Sunday, June 14, 2015

'माँ..'



...



"संदर्भ था..माँ का..
साज़ था..माँ का..

अंतर्मन-रेखाओं पे..
पट्टा था..माँ का..

प्रतीक्षारत पौधे को..
नाज़ था..माँ का..

कोमल-डोर सींचने में..
दाम था..माँ का..

इन्द्रधनुषी छतरी को..
भरोसा था..माँ का..

चरित्र-निर्माण में..
ताप था..माँ का..

जटिल जीवन-अंक में..
सामीप्य था..माँ का..

काल-चक्र छाँव में..
स्नेह था..माँ का..!!"

...

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

priyankaabhilaashi said...

सादर आभार..मयंक साब!!

ज्योति-कलश said...

sundar prastuti !

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..ज्योति-कलश जी..!!

संजय भास्‍कर said...

बहुत ख़ूब !

और आपके निराले अंदाज़ में प्रस्तुत कविता भी कमाल है

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..संजय भास्कर जी..!!