Thursday, January 29, 2015
'बोसे की किरचें..'
#जां
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"सच..अब मुश्किल है मिल पाना..
गिरफ़्त तड़पेगी स्याह रातों में..कोई न होगा वहाँ..
अलाव रो उठेंगे..कौन गर्माहट भरेगा..
दरिया मचलेगा..कौन समेटेगा लहरों का वेग..
रूह रेशा-दर-रेशा चीरती रहेगी..अपना ही नखलिस्तान..
ज़ालिम-ज़ालिम कहती रही..
रेज़ा-रेज़ा बिक गयी हूँ..फ़क़त..!!!
ये दर्दे-नासूर चीखते हैं..हर पल.. मैं सुलगती जाती हूँ..कश्ती-ए-लकीर.. काश..इस काश ने न बाँधी होती अपनी मियाद.. वफ़ा ने न लुटाये होते अपने सितारे..
उस गोलार्द्ध से सींच पी लेती..बेशुमार लिहाफ़.. मेरे हमसाज़..मेरे ग़मगुसार.. क़ासिद से कहो..न बजाये घंटी के शंख..के अंगारों से सेज़ है..मेरी रोशन..!!
तजुर्बा मुहब्बत का..नींद के कच्चे गोले..गुलाबी जाड़े के तंतु.. पहले बोसे की किरचें..मुरीद हैं..तेरी छुअन के..
सपनों के कारवां..अब कहाँ चॉकलेट और स्ट्रॉबेरी की सौगात पा सकेंगे..
ता-उम्र ढोते रहेंगे..मेरे काँटों के पुल..
सच..अब मुश्किल है मिल पाना..!!"
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--नाज़ुक बूँद की जिजीविषा..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/29/2015 06:23:00 AM
3
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बेज़ुबां ज़ख्म..
Wednesday, January 28, 2015
'बरफ़..'
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"सपनों का अपना रंग होता है.. तेज़ धूप और बारिश में बिखर जाते हैं..कोमल तंतु.. जाड़े में..हाँ..हाँ.. नर्म..मुलायम जाड़े में तो किनारे खिल उठते हैं..!! ऐन उसी वक़्त..दुनिया के थपेड़े खींच लेते हैं..तेरी-मेरी सूत की वो चादर..जिसके हर रेशे में क़ैद है..हमारी उल्फ़त का अलाव..!!!
ज़ार-ज़ार रोया बहुत..जाड़े की सबसे सर्द रात..और दूर वादियों में गिरी 8 इंच मोटी बरफ़..!!"
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--दर्द #3
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/28/2015 08:08:00 AM
6
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रूमानियत..
Monday, January 26, 2015
'चाँद के आँसू..'
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"उलझे सवाल कुछ उनके..
सुलझायेंगे तनहा रातों में..
आना कभी..टेलिस्कोप लेकर..
चाँद के आँसू दिखायेंगे..!!"
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--तोहफ़ा-ए-यार #2
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/26/2015 09:08:00 AM
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रूमानियत..
'बेहिसाब ज़ुल्म..'
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"तुम्हारा क़त्ल करना..या.. यूँ कहूँ..तुमसे मेरा क़त्ल होना..मुझे बेहद पसंद है..!! काँच के नाज़ुक सितारे..माणक के ज़ालिम लश्कारे..बेहिसाब ज़ुल्म ढाते हैं..!!"
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--तोहफ़ा-ए-यार #1
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/26/2015 01:57:00 AM
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रूमानियत..
Friday, January 23, 2015
'बाम..'
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"रंज़िशों को आराम दे देते हैं..
आ..
चाँद को बाम दे देते हैं..
मलता रहेगा..
दीवारों पे अपनी..
रंगीं थीं..
कभी..
रंगरेज़ ने..
उस स्याह रात की..
बेहिसाब चीखों में..!!"
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Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/23/2015 11:46:00 AM
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बेज़ुबां ज़ख्म..
'बसंत-पंचमी..'
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"वर दो..
भर दो..
शुष्क अंतर्मन..
तार दो..
सार दो..
कृतज्ञ मन..
पत्र दो..
छत्र दो..
प्रियंकाभिलाषी उपवन..!!"
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--विद्या-प्रदात्री माँ के चरणों में कोटि-कोटि सहस्त्र वंदन..!!
बसंत-पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें..!!..!!
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/23/2015 11:20:00 AM
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अंतर्मन की पुकार..,
गुरुजन..
Wednesday, January 7, 2015
'मुहब्बत की पतंग..'
#जां
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"इतने दिनों बाद..इतनी तनहा रातों के बाद..इक शाम तेरी गिरफ़्त में..<3
बह जाऊँ..या बहक जाऊँ..
तेरी छुअन से महक जाऊँ..!!
यूँ ही गले पड़े रहूँगी..साँसों की डोर पे अटकी है तेरी मुहब्बत की पतंग जब तक..!!"
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--मेरे दूज के चाँद..<3 <3
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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1/07/2015 08:31:00 AM
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रूमानियत..