Thursday, October 22, 2015

'पैगाम..'





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"मेरे स्वर को नाम दे दो..
आज फ़िर मुझे वो काम दे दो..

सजाऊँ जिस्म को तेरे..
पोर से अपने..
जवानी पे रवानी के..
किस्से जाम दे दो..

लिखूँ जो हक़ीक़त..
मंज़ूर नहीं..
अपने 'सीक्रेट इमोशंज़' का..
कोई पैगाम दे दो..

उठते सवाल..
बिखरता उम्मीदे-ज़खीरा..
क़त्ल करने को मुझे..
खंज़र कोई इनाम दे दो..

आओ लौट के..
मेरे जानिब..
साँसों को मोहब्बत..
रूह को आराम दे दो..!!"

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--शुक्र का शुक्र..<3

'संगदिल बहर..'





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"इंतज़ार ख़्वाब करने लगे हैं..और कितना तड़पेंगे.. इतने साल चुप-चाप बैठे रहे सबसे नीचे वाले दराज़ में..हाँ-हाँ दिल के सबसे नीचे वाले दराज़ में.. अब तो उनको भी अपने ख़्वाब पूरे कर लेने दो..!!!!

'जा जी ले अपनी ज़िन्दगी' टाइप्स... काश, इतना आसां होता न ये सब.. तो यूँ ही नहीं बिखरते हर शाम दहलीज़ पर मेरे अल्फ़ाज़ और उनकी संगदिल बहर..!!"

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--ज़िन्दगी की शायरी..स्याही की ज़बानी..

'लकीरें..'




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"कश्ती के सैलाब थे..
या..
मोहब्बत के ज़ख्म..

फ़क़त..
रंगों की तहज़ीब..
औ'..
लकीरें बह गयीं..!!"

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'नक्षत्र..'





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"नक्षत्र..तारे..ग्रह..
रहना मेरे खिलाफ़..

तेरी मुहब्बत में..
पा लूँगा लिहाफ़..!!"

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'राग..'




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"आजकल तुम्हारे ही लफ्ज़ मेरी साँसों में मचलते हैं..
जाने कौनसा राग छेड़ा उस स्याह रात..
सदियों का रिश्ता पक्का हो चला..!!"

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