Wednesday, August 4, 2021

'वजूद..'

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"फिर वहीं लौट आता हूँ..
हर दफ़ा..
उस इक वादे के बाद..
न तेरा हो सका..
न वजूद अपना कायम रहा..

खामोशी के खंज़र..
नक़ाब में मिलेंगे..
दास्तान-ए-चिराग..
खूब सिलेंगे..
मेरी आस..
साँस..
और..
ताप..

तुम मौजूद रहना!!"

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'बहाने..'

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"वो माँग रहा करीब आने के बहाने..
किसी को हारते हुए देखा है, ऐसे..!!"

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Tuesday, August 3, 2021

'पाठ जीवन के..'

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"अब कोई साथ रहे ना रहे.. कोई आरज़ू नहीं, कोई फिक्र नहीं, कोई फर्क नहीं... आएँ, जाएँ, रुकें, बैठें ....उनकी मर्ज़ी..!!"

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--#कुछ पाठ जीवन के, यूँ भी सीखे जाते हैं..

'खुशियाँ..'


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"लहकता खुशियों का अंबार..
क्षण-क्षण समृद्ध अध्यात्म संसार..!!"

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'वक़्त'

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"वक़्त पसरा रहा मेज़ पर देर तक..
शाम का हिस्सा, कुछ यूँ बयां हुआ..!!"

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Thursday, June 17, 2021

इश्क़






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"मुझे इस बेवज़ह की बेतरतीबी से इश्क़ है..!!"

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Tuesday, June 15, 2021

'प्यार से सागर या सागर से प्यार'..




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प्यार में सागर था या सागर से प्यार.. उत्तर कठिन है परंतु दिशा..दशा..सही? 

क्या यह सच है इंसान प्यार में बंध कर उलझ जाता है.. प्रेम के बंधन आपसे आज़ादी छीन लेते हैं.. आप वो सब कुछ नहीं कर पाते, जिस खास विशेषता के लिए आपको उस 'विशेष' ने चुना था.. 

सवाल थोड़े सच में डूबे हैं, थोड़े वक़्त के थपेड़े से चटके हुए.. आप सब जानते हैं ना साहेब, तो बताइए क्यों ऐसा होता है.. जो संगीत इन साँसों ने लयबद्ध किया था कभी, आज शोर क्यों करार दे दिया जाता है..

शौर्यगाथा पर्वत की गाएँ कि अडिग था, मज़बूत था, नदी को बहने दिया, सो दरियादिल भी कहें.. या नदी के समर्पण, नम्र व्यवहार को सम्मानित करें.. खेल के नियम कहते हैं कि सबको बराबर समय और मौका आवंटित किया जाएगा, तो इश्क़ की भाप में मन से पर्दे क्यों उतर जाते हैं..

सुरूर सरोवर से उठा और कमल में अवतरित हुआ.. और उनका संयोग समानता न झेल सका..

सर्जनात्मक पहल करने को आतुर मन और संपादकीय संपदा विशालकाय हुई तो उसकी ताकत कौन था? 

प्रश्न हल हो ना हों.. नये पहलू तराशते रहने चाहिए, कोई भी आयाम बिना खोज नहीं मिलता.. 

रूह तक पहुँचता प्रेम है तो जो जिस्म की चाह से शुरू हुआ और कुछ वक़्त इसके इर्दगिर्द रहा, वो क्या था.. संग्रहित भावनाएँ कभी झलकतीं हैं तो कभी छलकतीं.. मन कशमकश में होते हुए, वो सब कर जाता है जो शायद अस्वाभाविक होने के साथ-साथ अवांछनीय भी था..

उलझन बहुत है और रास्ता.. जाने क्यों आपसे ये सब कह रही, पूछ रही.. मेरी प्यास, तलाश, लौ, सरहद..अजब पहरेदार हैं मेरे सीने के, अरसे से बुझी नहीं जैसे ये आग..

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--#किस्से_और_मैं - १

Friday, January 15, 2021

'महफ़िल..'



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"सुकूँ के दरवाजे साकी खुले छोड़ गया..
जाने कौन रुका और क्या बह गया..

तुम मौलिक अधिकार का प्रचार करते रहे..
मेरा जुनून किस आँगन बिक गया..

किस्से बेशुमार सजे जिस शब..
नाम उसके ज़िंदगानी कर गया..

कैसे कहूँ कि तुम वो नहीं..देखो,
शिखर-ए-आज़ादी लुट गया..

महफ़िल दरीचों से झाँकती मिली..
शहादत-ए-साहिल वो आम कर गया..

बेचैनियाँ खामोश रहीं, जिस मोड़..
आगाज़-ए-मेला ठीक वहीं कर गया..

'भूल जा, जो हुआ सो हुआ'..
फ्रेज़ ये, गज़ब दाम कर गया..!!"

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