Saturday, November 24, 2012

'ह्रदय-कोशिका..'





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"ह्रदय-कोशिका नसों से जीवन संचारित करती रहीं, लक्ष्य को भेदती रहीं, उपजाऊ धरती पर खिलखिलाती रहीं..
आत्म-शोध अपूर्ण रहा..

..........कुछ किस्से गंतव्य तक नहीं पहुँचते..!!"


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Wednesday, November 21, 2012

'आफ़ताब..'




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"झूठ-सच ख़रा सौदा..
आफ़ताब मेरा..
लुट गया..!!"

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Monday, November 19, 2012

'गुनेहगार..'




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"अपने माज़ी का गुनेहगार हूँ..
अपने ही खज़ाने का सारिक हूँ मैं..

गिर नज़रों से..ना जी सकूँगा कभी..!!"

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Tuesday, November 13, 2012

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!






सुख, समृद्धि, सद्बुद्धि, सौभाग्य से परिपूर्ण हो हर दिवस..प्राणी-मात्र के लिए, हर जीव के लिए शुभकारी एवं मंगलकारी हो मंगल त्यौहार.. ढेरों शुभकामनाएँ..!!!

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"अंतर्मन की ज्योति जले..
करो प्रभुवर उपकार..
जीवन का उद्देश्य..
रक्षा प्राणी-मात्र..!!"

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Friday, November 9, 2012

'मन की बगिया..'




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"इक तेरा चित्र खिला जबसे..
मन की बगिया में..
उभर आये लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी पुष्प कितने..
बिखेरती है सूरज की आभा..
जब अपना स्वर्णिम..
लरजती है..
ओस की बूँद तभी..

चलो,
बहुत हुआ..
यूँ ना नश्वर को और नश्वर बनाओ..
समीप आ..
पुष्प अर्पण कर
प्रभुवर शीश नवाओ..!!"

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Thursday, November 8, 2012

'अस्तित्व..'





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"आप क्यूँ उकेर देते हैं ऐसा सत्य, जिसका कोई विकल्प हो ही नहीं सकता..??? क्यूँ लिखते हैं आप ऐसा जिससे ना जाने कितनों के घाँव हरे हो जाते हैं..?? क्यूँ लेते हैं आप परीक्षा उन प्रश्नों से, जिनके उत्तर कहीं भी नहीं मिल सकते कभी..?? क्यूँ आप उस धरती को झकझोरते हैं जिससे अस्तित्व स्वयं ही अपना अस्तित्व भूल जाता है..??

मत करिए ऐसा..बहुत एकाकी जीवन है मेरा, रहने दीजिये ना इसे वैसे ही..!!!"

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Tuesday, November 6, 2012

'नशीली कोशिकाएँ..'





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आज सुबह, नहीं पिछली दो रातों, से तेरा साथ जैसे और करीब लाने को बेकरार कर रहा है.. सिमटना चाहती थी तेरी बाँहों में, पर वक़्त ने बंदिश लगा दी.. मजबूरी का लिहाफ़, दुनिया की रिवायतें, जिस्म की थकावट..आखिर कब तक रोक सकेगी वस्ल-ए-रात.. तेरी इक छुअन का एहसास कब से धधक रहा है, तेरे होंठों की नमी कब से तलाश रही हैं गुलाबी बदन की नशीली कोशिकाएँ..

अभी बाईस दिन बाकी हैं..और बाकी है 'एक रात' जब मैं खुद को तेरे हवाले कर दूँगी..तुम लिखोगे ना मेरे लिए वो 'कविता' जिसका बरसों से इंतज़ार कर रही हूँ.. बहुत करीब आ जाना भूला सारी दुनिया, मेरे राज़दां..

आज सुबह से उदासी के बादल तेरे मेरे रिश्ते की छत पर डेरा जमाये बैठे हैं, कहाँ गया वो आवाज़ का जादू.. तरस गयी हूँ वो सब सुनने को...आओ ना मेरी जां...मुझे थाम लेने को, करीब आ बाँहों में कसने को..

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'नक़ाब..'






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"क्या पता..क्या जाने तू..
तेरी रहगुज़र में पलते सपने कई..
आना किसी रोज़ फुर्सत में..
दिखलाऊँगा दिल के दाग़ कई..
चाहत में डूबे गुलज़ार तारे..
नक़ाब ओढ़े महबूब कई..!!"

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'फ़रमान..'










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"मौत का फ़रमान भी अजीब-सा था इस दफ़ा.. पिछली कई मौतें यूँ भी जी आई थी, ना बाँध सकी थी कोई रिश्ता तेरी ऊँगली के पोरों से, ना तोड़ सकी थी रूह का लिहाफ़ तेरी बेरुखी से..!! क्यूँ बारहां भूल जाती हैं रेत की चादरें वजूद अपना, जबकि उनसे ही नखलिस्तान का क़द ज़िंदा रह पता है..!!


क्यूँ समझते नहीं महबूब..उनसे ही नहीं जुस्तजू कायम..
और भी हैं दर-ए-क़फ़स..मरती मिटती आरज़ू हर नफ्ज़..!!"

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'कोना..'




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"तुम समझते हो बेकार हूँ मैं, किसी लायक नहीं.. सच ही कहती हो तुम.. कोई गुल की खुशबू सहेज ना सका अब तलक..कोई दामन रंगीं ना कर सका..

तुम क्या जानो..तुम बिन गुज़री उन वीरान रातों में कितनी मर्तबा बाँटा था रूह का हर कोना-एक कोना तुम्हारी यादों का, दूजा बेशुमार चाहत के कैनवास का, तीजा मदहोश करती तुम्हारी आवाज़ से लबरेज़ उन हर्फों का, चौथा तुम्हारी गिरफ्त में क़ैद *वाफ़िर साँसों की बेताब **तिजारत का..

तुम क्या जानो..मेरी वफ़ा के माने..
संग की सिलवटें..बहलातीं नासूर पुराने..!!"


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*वाफ़िर = ढ़ेर/abundant
**तिजारत = traffic

Sunday, November 4, 2012

'बही-खाते ..'






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"जीते रहेंगे आप सदा..
गुज़ारिश है ऊपर वाले से..
मरना-वरना खेल हमारा..
तुमको क्या बही-खाते से..!!"

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