Monday, June 28, 2010

'काज़ल का दरिया..'


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"जुबां मिलती हैं..
जब कभी..
इक तेरा ही..
फ़साना गूंजता है..

सहारा मिलता है..
जब कभी..
इक तेरा ही..
तराना ढूँढता है..

बाँध दो..
समा..नज़रों से..
ना पिघले..
काज़ल का दरिया..
फिर कभी..!"

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'इक खलिश की आरज़ू..'


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"नाराज़ फिज़ा..
चाहत बेवफा..
क्यूँ फिरता हूँ..
तन्हा-तन्हा..
इक खलिश की आरज़ू..
यूँ भी पल..
बेमाने कर जाती है..!"

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'बेबाक़ जज़्बात..'

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"लिखेंगे जब कभी..
उठेंगी उंगलियाँ..
हसरतों के रस्ते..
अश्कों का काफिला..
कुछ बेबाक़ जज़्बात..
और..
बेनक़ाब हालात..!!"

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'कोमल अश्रु..'


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"सीमा का उलंघन हुआ है..
जब-जब..
बही है..
एक नयी धारा..
मिला है..
एक नया धरातल..
ना समझ सकोगे..
कभी..
ह्रदय की अनुभूति..
दर्पण की परछाई..
और..
ओस के कोमल अश्रु..!"

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'कृतज्ञ..'


गुरुजनों को सादर समर्पित..



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"क्या माँगू..ए-गुरुवर तुमसे..
प्रसाद में दिया ज्ञान-भण्डार..
कृतज्ञ हूँ..चरणों की धूल..
करना तुच्छ पर..अमी-वर्षा अपार..!!"


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Friday, June 18, 2010

''चाँद-सा जिस्म..'



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"तेरे हाथों की बरकत..
झलकी है..
इस कदर..
चाँद अधूरा..
देखे तुझे..
भर-भर नज़र..
बिखेरती हो..
जब कभी..
हर्फों के गुल..
चाँद सिमटता है..
हर शज़र..

रंगत मेरी चुरा लो..
चाँद-सा जिस्म..
खिला दो..
ना करो..
अब और सफ़र..!!"

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Thursday, June 17, 2010

'उठो..उठो..ए-भारतवासी..!!!'




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"आँगन में अलसायी..
खनखनाती कनक..

भेदती समय-चक्र..
हौसले की खनक..

ह्रदय-ताल में गहराई..
इंसानियत की जनक..

कब तक जलाएगी..
यह राजनीति की भनक..

संगठित संपदा करती कमाल..
यहाँ-वहाँ फैली चनक..

उठो..
उठो..
ए-भारतवासी..

सुनो..
भारत माँ की पुकार..

मिटा मन के विषण..
खोलो राह एक नयी..
दीप जलाओ खुशियों के..
बहाओ धारा एक नयी..

उठो..
उठो..!!"

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Tuesday, June 15, 2010

'अंतर्मन की चादर..'



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"सावन की पहली बारिश..
और वो तेरा मुस्कुराना..

मिट्टी की सौंधी सुगंध..
और वो तेरा चहचहाना..

आँगन में नाव बहाना..
और वो तेरा लहकाना..

अरसे से सहज रखी है..
वो भीगी मासूमियत..
और..
अल्हड़ शोखी..

अंतर्मन की चादर पर..!!"

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'तेरी महक.. माँ..'



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"संदूक में लिपटी रखी है..
मासूमियत में डूबी..
बचपन की सुनहरी..
यादों की झड़ी..

साथ ले आती हैं..
अनगिनत क्षण..
वो अपनापन..
मीठे आँसू..
मीलों फैली मुस्कुराहट..
सतरंगी आत्मीयता..

ताज़ी है..
अब तक..
तेरी महक..
माँ..!!"

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Monday, June 14, 2010

'हम ना होंगे..'


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"हसरतों में दबे..
मंजिल के निशां..
चाहतों के मेले..
कम ना होंगे..

अफ़सोस..


हम ना होंगे..!!"

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'बिखरा वजूद..'


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"उनको है शिकायत..
लिखते नहीं नज़्म..
बिखरा हो जब वजूद..
हो कैसे आबाद बज़्म..!!"

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Saturday, June 12, 2010

'इनायत-ए-माज़ी..'


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"कलम खुद-ब-खुद..
तस्वीर लहकाती रही..१

साँसे खुद-ब-खुद..
आँगन महकाती रही..२

मदहोशी खुद-ब-खुद..
कसक दहकाती रही..३

मियाद खुद-ब-खुद..
नूर चहकाती रही..४


इश्क-ए-दीदार..
इनायत-ए-माज़ी..!"

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Friday, June 11, 2010

'खरीद-फ़रोख्त..'


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"दाम लगा ना पाया माज़ी..
मेरी मोहब्बत का..
खरीद-फ़रोख्त..
बंद है रूह की अब..!!"

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'सनम..'



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"तेरे हर नक़ाब से..
हकीकत चुरा लूँगा..
जो ना मिले तुम सनम..
अक्स मिटा दूँगा..!!!"

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Wednesday, June 9, 2010

'लिबास..'


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"निकलेंगे जब कभी..
छूकर तेरी खुशबू..
महकेंगे राज़ कई..
अंजुमन के फलक पे..

मेरा लिबास..
बादामी-बादामी..!!"

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Monday, June 7, 2010

'दोज़ख..'


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"माज़ी के पन्नों में..
निकले हैं..
गुल बेहिसाब..
दफनाये थे..
रिवायतों के खौफ से..
सुलगते जज़्बात..
दर्द से सरोबार..
कुछ सख्त लिबास..
कुछ रंगीं मिजाज़..

क्यूँ..
नूर आजमाता है..
दोज़ख..!!"

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Saturday, June 5, 2010

'आशियाना-ए-कब्र..'


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"दिल की वादियों में..
ठहरा अक्स..
रूह में महफूज़..
फलक की तहज़ीब..
कातिल लगाये बैठा..
बेहिसाब नक़ाब..
ज़ार-ज़ार मिसाल देता..
अज़ीज़ रकीब..
दस्तूर हैं..
निराले कुछ..
शिकवे सजते..
आशियाना-ए-कब्र..!!"

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Friday, June 4, 2010

'वजूद-ए-हयात..'


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"बिखरे जज़्बात..
सुलगी रूह..
खूनी खंज़र..
आलम सारा..
कातिल मेरा..
माँगता फिर रहा..
वजूद-ए-हयात..
कैसे करूँ इकरार..
है मोहब्बत..
फ़क़त तुझसे ही..
ए-दिलदार..!!"

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Thursday, June 3, 2010

'सिलवट..'


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"यादों के दिये..
जले-बुझे..
रात भर..
हर करवट..
हर सिलवट..
क़ैद रही..
रूह में..
हर नफ्ज़..!"

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'मौसम-ए-सुकूत..'


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"अक्स माँगता है निशां..
रूह साँसों का समां..

मौसम-ए-सुकूत..रंगीन..!"

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