Tuesday, October 29, 2013

'गिरफ़्त..'








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"तेरे दिल में बसता हूँ..जानम..
तेरी हर साँस में सुन शोर मेरा..
करने दो एक बार फिर..
इक कोशिश नाकाम-सी..
क्या बांधेगा रवायतों का टोला..
तेरी गिरफ़्त में क़ैद..
मेरी हर आज़ादी है..!!"

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'प्रार्थना..'





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"हर पल ख़ुदको नम रखना..
पास न कोई गम रखना..
जानते हैं वो अंतर्मन की बातें..
प्रार्थना में अपनी दम रखना..!!"

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Sunday, October 27, 2013

'आठ..'





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"जां..आज कितने दिनों बाद 'आठ' बजे हैं.. जैसे वक़्त रुक गया था न इस दरमियां, जब थी दुनिया दरमियां..!!

चलो, आज शब न आने दें किसी को दरमियां.. वक़्त नापे ख़ुद वक़्त को..और..वक़्त ही ना हो दरमियां..!!"

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--थॉट एट 'एट'..

Friday, October 18, 2013

'वीकैंड मेनिया..'





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"क्या तुमने सुनी हैं मेरी धड़कनें कभी..
सुलगे हो अंगारों की सेज पे कभी..
दहाड़े मार-मार रोये हो कभी..
रात भर ख़त लिखते-मिटाते रहे हो कभी..

नहीं न..

फिर तुम समझ नहीं सकते..

मेरी रूह की गहराई..
मेरी इबादत का जुनूं..
मेरे जिस्म के निशां..
मेरे पोरों की गर्माहट..

जाओ..

और भी हैं..
महफ़िल में तुम्हारे..

इक हम नहीं..
तो गम नहीं..!!"

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--वीकैंड मेनिया..

Wednesday, October 16, 2013

'स्याह जज़्बात..'





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"सफ़र की पहली मंजिल..
हमसफ़र की दूसरी दहलीज़..
दरख्त की तीसरी रहगुज़र..
कागज़ की चौथी निशानी..

सुर्ख़ सैलाब सिमट जायेंगे..!!"


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--स्याह जज़्बात..रूह की सबसे नीचे वाली बैंच पर..

'प्रेम के अर्थ..'






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"क्या प्रेम में मिलना ही सब कुछ है..?? इसकी अनुभूति स्वयं में इतनी प्रबल है कि किसी और व्यक्ति या वस्तु विशेष का कोई स्थान शेष ही नहीं रहता..कोई रिक्तता का प्रश्न ही नहीं..!!! जाने क्यूँ..कुछ जन इस 'प्रेम' के इतने अर्थ कहाँ से ले आते हैं..??

वैसे भी, जीवन में पाना ही सब कुछ नहीं होता.. भोजन के स्वाद का सही माप तो दूसरे को चखा कर ही ज्ञात होता है.. है ना..??"

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--सिली पीपल..

Wednesday, October 9, 2013

'जिस्मों की रीलें..'







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"इस रूह से उठा..
उस रूह चला..
फ़ासले पाटता कैसा गिला..
जो तुम नहीं कोई ख्वाइश कहाँ..
मैं दीवाना..आवारा..
दश्तो-सहरा बिखरता रहा..
चल उठायें तम्बू की कीलें..
जाने कबसे पुकारती जिस्मों की रीलें..!!"

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Sunday, October 6, 2013

'कभी..'








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"खलती है कमी इक तेरी..
रूह पूछती है सवाल कई..
किसका जवाब दूँ..
किससे राह पूछूँ..
कौन आयेगा यहाँ कभी..

मर्ज़ी इक तेरी..
दहशतगर्दी इक मेरी..
साँस की डोरी..
कच्ची रही..
यूँ ही..
क्या समझेगा कोई कभी..!!"

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