Sunday, April 23, 2023

अक्षय-तृतीया..


अक्षय तृतीया के मंगलमय उत्सव पर ढेरों शुभकामनाएं..💐💐

Thursday, April 20, 2023

'तरबतर खत..'

साहेब, ओ प्यारे साहेब,

आज आपको हाले-दिल न लिख पाती तो मलाल होता.. खुशबू से तरबतर रूह और एहसासों से लबालब साँसें.. काश, लफ्ज़ आज्ञाकारी मित्र की तरह बात मानते और पढ़ते जाते मेरी खामोश गुफ्तगू!

सुनते वो खनक हँसी की, पिरोते खुशी की माला, सहेजते पोरों से महकते खत, थपथपाते नेह के बाँध.. ऐसा मंज़र जुगनुओं ने दरख़्त के आसपास संजो रखा है, चलिए किसी रोज़ साथ देख आएँ..😍

अनगिनत बिंब और अनकही उपमाएँ, मेरे अंतस के महाद्वीप पर उग आए हैं.. ऐसी लज़्ज़त, ऐसी खुमारी और कहाँ अता होगी, आप ही कहिए, साहेब..

रंगों की पिचकारियाँ और रंगरेज के डिब्बों में लयबद्ध खड़े कच्चे-पक्के मिज़ाज़, अपने मांडणे में इन्हें साथ ले लीजिए, साहेब.. उसकी शदीद मोहब्बत में,  महबूब के बेसबब इंतज़ार में, ट्यूलिप के गुलिस्तां में, धड़ल्ले से भागता मेरे नाम का छल्ला..

खुशफहमी के पाल और इनायत के पाये, इस दफा खूब सज संवर कर आए हैं.. खतों के सिलसिले खातों में जोड़ें जाएं, ये नाम-जमा वाली वसीहत ज्येष्ठ के महीने में ठंडी बयार ले आए.. और हाँ, इस रूमानी एडिक्शन की ज़मानत न होने पाए कभी!!

इस अवचेतन मन में सुकूँ के बीज रोप पोषित करने वाले प्यारे दोस्त का शुक्रिया..

--#प्रियंकाभिलाषी

Tuesday, April 11, 2023

मेरे होने के मायने..




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"प्यारे साहेब,

आपसे वार्तालाप न हो पाना, मतलब खुद से न मिल पाना.. सोचिए लफ्ज़ों के सिमटने-बिखरने की बेशुमार रोशनी, किस पड़ाव पर मिलेगी...

कोई पुख़्ता सबूत पेश करता तो हवाएँ भी गवाही देतीं, जिरह बाबत दिखाता वो अपना वॉलेट जिसमें मेरे नाम का इनिशियल था.. पर देखिए न, साहेब, ऐन वक्त पर वो चला गया..

जाने कैसी जद्दोजहद घेरा लगाए बैठती, कभी खुशी, कभी हँसी, कभी खुमारी और कभी बेख़्याली डूब जाने की..उबर जाने की.. उसके 'पास' होने पर खो जाने की तसल्ली.. कभी सपनों की तस्करी, कभी ख़्वाहिशों की पैरवी.. मन बारहां 'पल' चाहता था, हाँ, नाप कर तोल कर पूरा का पूरा उसका 'साथ'... क्या करें, साहेब, ये बिज़नेस ट्रेट्स जीन में बसे हैं, उपहार में मिले हैं.. सो, अपना मौलिक रूप और अधिकार संभालेंगे ही..😍

मुझे लिखनीं थीं रेशम पर मुलाकातें.. उस हर एक 'मुलाकात' का ब्यौरा जो हक़ीक़त की नज़र से परे रहा, पर रहा रूह की जिल्द.. गुलिस्तां मानिंद महकता उसका एहसास, कलाई के कलावा जैसा सुरक्षा कवच.. अद्भुत है मोहब्बत का ज़खीरा..

साहेब, यूँ सिलसिला गुफ्तगू का चल पड़ा अरसे बाद तो सोचा राज़ बयां करना ज़रूरी है.. इबादतें जो चाहीं थीं जाते हुए, शायद सहर की तस्दीक न कर सकीं.. कभी हथेली पर उसके होने का दंभ, कभी रात में छुप जाने का ग़म.. उस दिल के करीब जाना था, बेहद करीब.. के आहट भी हो तो खलल लगे 'सुकूँ के आँगन'.. 

कैसा तिलिस्मी फ़रेब है, साहेब, मैं शब्दों का अंबार लगाऊँ और वो अदायगी से नज़र फिराए.. किस्से हैं, किस्से, क्या कीजे..

उसकी दहलीज़ पर यूँ तो रखने थे रजनीगंधा, पर घड़ी की सुई ने इशारे से समझा दिए 'मेरे होने के मायने'.. क्यों मुझे नहीं चढ़ना था उस पोडियम जहाँ विकल्प क्या, सूची से नाम भी नदारद था अपना.. 

इन 'जीवन-पाठों' का मेरे जिस्म पर, मेरी रूह पर ऊष्मा और उमंग भरने का 'आरोप' तय हुआ.. आप ही कहिए, साहेब, कौनसी टकसाल जा इनकी अशर्फियाँ बनवाऊँ..😍

खैर, पोलाइटली सारे इल्ज़ाम साथ ले आया हूँ.. आज उसे जुदा कर आया है..

अंतस की क़ैद से क्या कभी कोई जुदा हो सका है?? आपसे ही मेरे सवालों के रंग हैं, साहेब.. लम्हे, नदियाँ, समंदर, जुगनू, छुअन, आँसू, पानी, धूप, चाँदनी रातें, तोहफ़े, गिरफ्त, रूह...सब खुश होंगे! सब आबाद रहें!

दिल की कार्यवाही इस जन्म के लिए मुल्तवी करी जाए!!"

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दोस्ती की दीवार..



चित्र साभार - अंतर्जाल..
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"यार साहेब, 

आपकी कल रात की बात ने सोचने पर मजबूर किया कि "जाने कितने दोस्त आते जाते रहते है तुम्हारे"... 

कई दिनों बाद ये एहसास पनपा था कि दर्द फिर से उठा, निराश भी हुआ मन.. क्या उम्मीदों की गठरी हमारा मूल रूप बदल देती है??? निश्चय ही ऐसा होता होगा, तब ही अपनी कश्ती की दिशा, लय, लक्ष्य सब भुला हम इख्तियार करते इक नया रस्ता, इक नया मनोभाव..

कैसी बेवज़ह की फिलोसॉफी का कोलाज हो गया मेरे अंतस का फ्रेम.. क्या शिकवों के शहर डेरा डाल चहक रहा.. क्या कैनवास पर तस्वीरों में स्याह रंग उड़ेल रहा..

खैर, रात थी बीत गई.. मुझे फिर से भटकना है भीतर तक, अंतस के आखिरी पड़ाव तक.. शिराओं के बहकने तक.. मुझे अपनी लैफ्ट रिस्ट पर पहननी है सितारों की चमक और गढ़ने हैं उसमें बेबाकी के सफर.. इंद्रधनुष को मापना है लद्दाख जाकर और सागर की रेत से जोड़नी है यादों की कड़ी.. मुझे पीना है दरख़्त का अदम्य साहस और लिखनी है मोहब्बत की रस्म.. 

मैं खुद से साक्षात्कार के लिए बेताब हूँ, मैं चराग हूँ.. दीपों से सींचता, द्वीपों पर टहलता.. ऊर्जा का पुंज, मौसिकी-सा खनकता..

शुक्रिया साहेब, बेहद शुक्रिया.. यूँ हर दफ़ा साबित करने का कि "आप ही मेरे लाइटहाउस हैं!!".. उबारते, निखारते, पाठ स्मरण कराते..😍 आप चश्मदीद गवाह हैं, पलायन से पोषित होने के.. आप सुकूँ के खज़ाने हैं..

यूँ छुपकर सुवासित करता अंबर, यूँ नेह की डोर में बँधा बोगनवेलिया, यूँ खतों के बटुए, यूँ लेट नाईट चाँदनी की आभा, यूँ उपमाओं के रेले, यूँ नेमत के बंडल्स..कुछ तो है जो सेलफोन का पासवर्ड हो चला..

शुक्रिया मुझे सुनने का, मेरे ख्यालों को पकने के लिए उर्वरक जमीन देने का..

किस्सों की तरकश टंगी रहे दोस्ती की दीवार! 

ज़िन्दगी ज़िंदाबाद!
दोस्ती ज़िंदाबाद..!!"

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Friday, March 31, 2023

'इंतेज़ार के बीज..'




चित्र आभार - जिनकी भी हो!!
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"इक रोज़ उसने कहा था कि "सबसे बुरा होता है, प्रेम का इंतज़ार करना"... प्रेम का स्वरूप समझना, स्वयं में उतारना, आत्मसात करना कठिन प्रतीत हो, परंतु जब अंतस में उतरे, समस्त आचार-विचार-व्यवहार सबकी दिशा बदल जाती है.. 

एक अद्भुत संगम, एक अविरल धारा, एक अतुल्य भाव जिसमें बहना ही एकमात्र विकल्प!

एक ऐसी मनोस्थिति जहाँ समर्पण और समर्पण ही जीवन-दर्पण होता है.. एक तिलिस्म जिससे अछूता एक पल नहीं और उससे सुंदर व्याख्या नहीं..

पर उसने कहा था, हाले-दिल..
उसने जिया था, वो दौर..
उसने लिखा था, दर्द-ए-एहसास..
उसने पिया था, मोहब्बत-ए-राज़..

अब तलक 'इंतज़ार के बीज' रोपित होने के इंतज़ार में हैं और कोई उन्हें 'सींचने' के लिए तड़प रहा..

किसी ने उस 'हसीं' मुलाकात के बाद कहा था, "तुमसे मिलना अधूरा ही रहा इस दफ़ा".. उस गुलाबी शहर की रंगीं गलियां अब तक उसकी आस में रुकीं हैं, के 'इक रोज़ दीदार होगा!'..

उसकी बज़्म में नगमा कोई मेरा गूंजेंगा.. मैं लिखूँगी नज़्म रूमानी और उसके होंठों पर ज़िक्र मेरा होगा!

तुम जानेमन हो! मेरे होने का वजूद, मेरी रूह की दराज़ के महबूब!"
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Thursday, March 30, 2023

'दिलदार..'

चित्र आभार - प्रिय मित्र..

यार साहेब, कबसे आपको तलाश रही और यह भी जानती हूँ कि आप दूर कभी हुए ही नहीं... जो भ्रम हैं, दिल के हैं, नज़र के हैं.. 

किसी संबंध की नींव जैसे आज़ादी वाली प्रसन्नता.. मन उड़ता हुआ किसी अजनबी के पास जा बैठे और सुकूँ के पल जी आए, पी आए, फ़क़त और क्या चाहे कोई..

कमल की कोमल पंखुड़ियाँ और आत्मीयता की अनवरत परत, कोई कैसे रोक सके स्वयं को आपके मोहपाश में बंधने से.. आप हौंसले की मशाल और सकारात्मकता की मिसाल हैं..

जब कभी मन स्वयं से प्रश्न करे, अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए तो आपके शब्द राह दिखाते हैं.. 'चारागर' ऐसे ही होते हैं ना??

नदी-सी थाह रखने वाले, ओ साहेब जी, कितनी दफ़ा परिस्थितियों का जाल अपना वर्चस्व कायम करने के लिए मुझे खींचता अपनी ओर, पर मैं आपके अनुभव में पिरोई माला से लौट आती हूँ सकुशल..
कभी पर्वत-सा साहस भरते हैं, कभी भाँप-सा ताप... तिलिस्मी 'जादूगर' ऐसे ही होते हैं ना??

खिलखिलाहट के झरोखे, आँखों में चमक, गालों पर गड्ढे, मदमस्त चहकता दिल.. अपनी चाहत के रंग से तन-मन भिगोने वाले 'रंगरेज़' ऐसे ही होते हैं ना??

जिस सुकूँ से लफ्ज़ तराश दें, मन की उड़ानें.. जिस गर्मजोशी से भर सकें, दरिया की मचानें.. जिस नरमी से सहला दें, सूत की दुकानें.. अल्हड़ बहने दें, पोरों से पैमाने.. सिलवटों से लहराते पेशानी चमकाते, 'दिलदार' ऐसे ही होते हैं ना??

*आप स्नेह-पुंज हैं, साहेब..!*

उपमाएँ करतीं सवाल..
किसके लिए भरते थाल..
शख्स खास होगा, थामी..
जिसने दिल की पाल..!!

--#प्रियंकाभिलाषी