Tuesday, April 11, 2023

मेरे होने के मायने..




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"प्यारे साहेब,

आपसे वार्तालाप न हो पाना, मतलब खुद से न मिल पाना.. सोचिए लफ्ज़ों के सिमटने-बिखरने की बेशुमार रोशनी, किस पड़ाव पर मिलेगी...

कोई पुख़्ता सबूत पेश करता तो हवाएँ भी गवाही देतीं, जिरह बाबत दिखाता वो अपना वॉलेट जिसमें मेरे नाम का इनिशियल था.. पर देखिए न, साहेब, ऐन वक्त पर वो चला गया..

जाने कैसी जद्दोजहद घेरा लगाए बैठती, कभी खुशी, कभी हँसी, कभी खुमारी और कभी बेख़्याली डूब जाने की..उबर जाने की.. उसके 'पास' होने पर खो जाने की तसल्ली.. कभी सपनों की तस्करी, कभी ख़्वाहिशों की पैरवी.. मन बारहां 'पल' चाहता था, हाँ, नाप कर तोल कर पूरा का पूरा उसका 'साथ'... क्या करें, साहेब, ये बिज़नेस ट्रेट्स जीन में बसे हैं, उपहार में मिले हैं.. सो, अपना मौलिक रूप और अधिकार संभालेंगे ही..😍

मुझे लिखनीं थीं रेशम पर मुलाकातें.. उस हर एक 'मुलाकात' का ब्यौरा जो हक़ीक़त की नज़र से परे रहा, पर रहा रूह की जिल्द.. गुलिस्तां मानिंद महकता उसका एहसास, कलाई के कलावा जैसा सुरक्षा कवच.. अद्भुत है मोहब्बत का ज़खीरा..

साहेब, यूँ सिलसिला गुफ्तगू का चल पड़ा अरसे बाद तो सोचा राज़ बयां करना ज़रूरी है.. इबादतें जो चाहीं थीं जाते हुए, शायद सहर की तस्दीक न कर सकीं.. कभी हथेली पर उसके होने का दंभ, कभी रात में छुप जाने का ग़म.. उस दिल के करीब जाना था, बेहद करीब.. के आहट भी हो तो खलल लगे 'सुकूँ के आँगन'.. 

कैसा तिलिस्मी फ़रेब है, साहेब, मैं शब्दों का अंबार लगाऊँ और वो अदायगी से नज़र फिराए.. किस्से हैं, किस्से, क्या कीजे..

उसकी दहलीज़ पर यूँ तो रखने थे रजनीगंधा, पर घड़ी की सुई ने इशारे से समझा दिए 'मेरे होने के मायने'.. क्यों मुझे नहीं चढ़ना था उस पोडियम जहाँ विकल्प क्या, सूची से नाम भी नदारद था अपना.. 

इन 'जीवन-पाठों' का मेरे जिस्म पर, मेरी रूह पर ऊष्मा और उमंग भरने का 'आरोप' तय हुआ.. आप ही कहिए, साहेब, कौनसी टकसाल जा इनकी अशर्फियाँ बनवाऊँ..😍

खैर, पोलाइटली सारे इल्ज़ाम साथ ले आया हूँ.. आज उसे जुदा कर आया है..

अंतस की क़ैद से क्या कभी कोई जुदा हो सका है?? आपसे ही मेरे सवालों के रंग हैं, साहेब.. लम्हे, नदियाँ, समंदर, जुगनू, छुअन, आँसू, पानी, धूप, चाँदनी रातें, तोहफ़े, गिरफ्त, रूह...सब खुश होंगे! सब आबाद रहें!

दिल की कार्यवाही इस जन्म के लिए मुल्तवी करी जाए!!"

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