Monday, December 30, 2013

'धरती-माँ..'






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"बहुत हुए 'जां' के नाम स्टेटस..आज कुछ अलग होगा..


'वज़ूद..पहचान..ईमान तुझसे है..
शुक्रगुजार हूँ..साँसें तुझसे हैं..

कतरा लहू का..बहा दूँगा..
मेरी शान..ए-वतन..तुझसे है..

पा तुझे ज़िन्दगी है पायी..
रवानी..कहानी तुझसे है..

मकां..दुकां..दो वक़्त रोटी..
चादर-ए-इनायत तुझसे है..

गुरूर क्या करूँ झूठे तन पे..
क़फ़न की दरकार तुझसे है..

पेशानी पे माटी सजे..भारत-माँ..
हर शै की आज़ादी तुझसे है..!!'


धरती-माँ की शान में यूँ ही कुछ शब्द..!!"

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कृपया बहर..रदीफ़..मतला..मीटर..सब को आराम करने दीजिये आज.. :-)

Thursday, December 26, 2013

'दर्द और आगोश..'






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"कोहरा पंख फैलाए बैठा रहता है..हर रोज़ कहता है, "आओ, तुम्हें तुम्हारी 'जां' से मिलवा लाऊँ दुनिया की नज़रों से छिपा कर.. क्यूँ तड़पते हो दिन-रात..?? जाओ, भर लो ना आगोश में जो तुम बिन जी नहीं सकते..!!"

हमने कहा, "सुनिए, कोहरा महाशय..दर्द और आगोश अब दोस्त नहीं रहे.. हम उनके नहीं हो सके.. शायद, वो भी हमें न भुला सके..!! पर मियाद पूरी हो गयी..!! वक़्त के साथ सब बह गया..जो रह गया वो मैं हूँ..!!! टूटा..बिखरा..बर्बाद..बेज़ुबां..बेगैरत..तनहा..फ़क़त मैं..!!"

मान जाओ, कोहरा बाबू.. कुछ नहीं रखा इन सब में..!! जाओ, अपना कर्तव्य निभाओ..!!"

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--तुम बिन दिल जिंदा नहीं अब..

Sunday, December 22, 2013

'वो मैं था..'






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"सब कुछ जो असंभव हुआ करता था..
आज संभव हो चला..
मैं जिस राह का पथिक न था..
वहाँ राज करने लगा..
मेरा भाव किसने जाना..
मैं रोधक तुम्हारा होने लगा..

न पढ़ सकोगे कभी..
अंतर्मन लिपि..
तुम्हारी दृष्टि में..
अपराधी जो हो गया..

समय का दोष था..
या..
परिस्थिति का रोग..
जो पिसा..मिटा..
वो मैं था..
हाँ..
वो मैं ही था..!!"

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'स्याह दूरियां..'







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"जब-जब WhatsApp पर कोई मैसेज आता है.. वो पल आँखों में कितने सपने सजा जाता है..!! याद है न--'एक सौ सोलह चाँद की रातें..'....'एक तुम्हारे काँधे का तिल..'...

उसी काले तिल का एहसास..तुम्हारी छुअन का वो खूबसूरत लम्हा..रूह को तड़पा जाता है..!!"

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--स्याह दूरियां..बेबस आसमां..

Wednesday, December 18, 2013

'किस्सा..'




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"करीब आना फ़ासले बढ़ाना..
मुमकिन कहाँ..तुम्हें भुलाना..

अधूरी हूँ..अधूरा ही रहने देना..
किस्सा जो हुई..किस्से होंगे..

टूटी कश्ती के किनारे बैठा..
मुर्दे माफ़िक़ मेरा गुरूर ऐंठा..

पिघल रही..बह रही..आज फिर..
सम्भाल लो..मेरे ज़ुल्मी मुसाफिर..!!"

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'आँखें..'






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"कितने राज़ खोलती है..
कितने समेटती है..

तुम्हारी हर बात..
जाने क्या बोलती है..

मैं सुन भी न पाऊँ..
फिर भी थामे रखती है..

उदास कहूँ या अलहड़..
कितनी अंदर झकझोरती है..

तुम क्या जानोगे..
सच ना मानोगे..

संयोग से मिलना..देखो..
आँखें कैसे पुचकारती हैं..!!"

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Monday, December 16, 2013

'हर्फ़..'





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"मेरी किस्मत..वहशत..तन्हाई..
हर्फ़ रुक जाओ..
कुछ देर तुम ही मेरे करीब बैठ जाओ..
कोई नहीं रहा यहाँ..अब जाऊँ कहाँ..

किस्से मेरे बिकते हर रोज़..
मैं बैगैरत..आवारा रहूँ..
इतनी दुआ अता करना..!!"

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Sunday, December 15, 2013

'ज्वनशील तत्व..'










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"हम कभी-कभी कितने बेबस हो जाते हैं न.. आज चाहते हुए भी किसी की फोटो लाईक नहीं कर सकती, वैसे अच्छा ही है.. दो शब्द अगर तारीफ़ के लिख दूँगी तो अपनापन बढ़ जाएगा और फिर जाने कितने भाव उमड़ आयेंगे..

और फिर..कितने ज्वनशील तत्व उत्पात मचायेंगे..!!!

जीवन-धारा को बहने देती हूँ..
अपनी डगर पर चलती रहती हूँ..
मेरी पसंद-नापसंद से क्या होना है..
मैं अक्सर..यूँ ही कहती रहती हूँ..!!"

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--कुछ सन्देश जो दिल से दिमाग तक पहुँचने में बहुत समय लगाते हैं..

Thursday, December 12, 2013

'पत्र की पात्रता..'



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"वो मिठास कहाँ..
धैर्य और प्रेम का वो संगम कहाँ..
विश्वास की मजबूत धरोहर कहाँ..

सब बह गया..
समय की धार में..

सुन्दर..मोती-से अक्षर बोलें कहाँ..
पत्र की पात्रता ही सुरक्षित कहाँ..!!"

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--सुनहरी स्मृतियाँ..

Wednesday, December 11, 2013

'बेदख़ल होतीं राहें..'




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"खुशियाँ भी झूठी हैं..गम तो अपने रहने दो..!! सुनो, चाहे जितना दम लगा लेना..मुझसे न ले सकोगे अपनी रूह का हिस्सा..जो सिर्फ मेरा है..और ता-उम्र रहेगा..!!"

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--बेदख़ल होतीं राहें..

Tuesday, December 10, 2013

'साज़..'





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"मेरे हाथों में जमा है अब तलक..
उसके नर्म हाथों का एहसास..

आँखों में गाढ़ा है अब तलक..
उसकी छुअन में लिप्त साज़..

कुछ एहसास..साज़..पिघल हुए..
नश्तर-से प्यारे..नासूर-से ख़ास..!!"

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--मियाद..साहिल..सब बेमाने..

Monday, December 2, 2013

'अनुभूति का वरदान..'


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"गोलार्ध से बहता अथाह समंदर मेरे महासागर को नयी दिशा दे रहा है.. आओ, थाम लो मेरा समर्पित जीवन और संचालित होने दो जीवन-प्रणाली..!!! जानती हूँ..कि तुम ही जानते हो मेरी व्यथा..!!"

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--अनुभूति का वरदान..रख लो मान..

Sunday, December 1, 2013

'तुम परिंदे हो..'




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"ये कैसी सज़ा मुकरर की..
खबर थी तुम्हें..

तूफां के बेशुमार पैमाने छीलते हैं हर नफज़ रूह मेरी..
उधेड़ते हैं झूठे-फ़रेबी रिश्ते तहज़ीब के फेरे..
मलते हैं नमक नासूर पे..मौसम घनेरे..
जड़ते हैं ख्वाहिशों पे इल्ज़ाम हर सवेरे..

तुम भी चले गए तो..
बिखर जाएगा वज़ूद..
सुलग जाएगा हर अंग..
टपकेगी हर रात छत..
उखड़ेगी हर पल वक़्त की सुई..

खैर..

तुम परिंदे हो..
जहाँ मर्ज़ी जाना..
मानता हूँ तुम्हें..
चाहे भुला जाना..!!"

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--संडेज़..वर्स्ट हिट्स..