Wednesday, December 18, 2013
'किस्सा..'
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"करीब आना फ़ासले बढ़ाना..
मुमकिन कहाँ..तुम्हें भुलाना..
अधूरी हूँ..अधूरा ही रहने देना..
किस्सा जो हुई..किस्से होंगे..
टूटी कश्ती के किनारे बैठा..
मुर्दे माफ़िक़ मेरा गुरूर ऐंठा..
पिघल रही..बह रही..आज फिर..
सम्भाल लो..मेरे ज़ुल्मी मुसाफिर..!!"
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Labels:
रूमानियत..
3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
कल 20/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
धन्यवाद यशवंत जी..
सादर आभार..:-)
कोमल भावो की
बेहतरीन........
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