Monday, December 16, 2013
'हर्फ़..'
...
"मेरी किस्मत..वहशत..तन्हाई..
हर्फ़ रुक जाओ..
कुछ देर तुम ही मेरे करीब बैठ जाओ..
कोई नहीं रहा यहाँ..अब जाऊँ कहाँ..
किस्से मेरे बिकते हर रोज़..
मैं बैगैरत..आवारा रहूँ..
इतनी दुआ अता करना..!!"
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Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
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