Sunday, February 10, 2019
'मेरे हौसलें..'
...
"थक चुके होंगे तो बैठ जाएँगे..
मेरे हौसलें मेरे बिन, कहाँ जाएँगे..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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2/10/2019 10:19:00 AM
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प्रेरणादायी सन्देश..
'विचित्र संयोग..'

...
"सपनों का वो पहले करिश्मा अब कहाँ स्थित है..
किसी ने सोचा, किसी ने ढूँढ़ने का यत्न किया, किसी ने कोई रपट लिखवाई..
सब यथावत हो गए..
समय की नोक पर विश्वास का खेत भरपूर कनक देता है..
धरा को एक क्षण पूज लेना, स्वतः ही अद्भुत संगम हो जाता है..
खिलाड़ियों का निर्माण क्षेत्र की आवश्यकता नापता है..
कमती-बढ़ती के उपहास, उपवास की रात्रि का शगुन होते हैं..
पूँजी उत्पादकता से होती है या उपवन की महकास से..
विचारधारा, विकास, निश्चित ही निस्तारित हो जाते हैं..
विचित्र संयोग है, सुगम पगडंडियों का कांकड़ी हो जाना..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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2/10/2019 09:56:00 AM
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ज़िन्दगी..
Monday, October 15, 2018
'थॉट्स का मूवमेंट..'

...
"जब थॉट्स का मूवमेंट किसी भी डायरेक्शन में होने लगे, समझना चाहिए कि खतरनाक स्टंट का प्रोग्राम लिखा है आगे..
मेरी डायरी बिल्कुल बदल चुकी है..आँखों की चमक थॉट्स की प्रोसेसिंग से तेज़ है..!! मेरे चेहरे की गर्द आभा और मिशन तक पहुँचने की एकाकी मुश्किलें, सब पिघलने लगीं हैं!
मुझे तुमसे मुहब्बत है तो क्या, तुम मेरे गाइड और मेंटॉर भी हो!!"
...
--#जां
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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10/15/2018 09:33:00 AM
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जां
'मेरी आयतों का गुमां..'

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"तुम मेरे अंतर्मन को सींचते हो उस घूँट से, जो लिखा था दर्द की रात में..
तुम प्रेम की तरह इश्क़ पर परत चढ़ाते हो पराली की, जिसे जलना ही होगा इस मर्तबा भी..
तुम सितारों को ढालते हो उन निष्ठुर कठोर साँचों में, जहाँ मोल छालों का लगता है..
तुम मेरे रुआब को पैना करते हो उस कैफ़ियत से, जहाँ सामान मकां हो जाता है..
तुम मेरे तिलिस्म का सच हो..
तुम मेरी रुबाई का फाया हो..
तुम मेरे अल्फ़ाज़ का जिस्म हो..
तुम मेरी आयतों का गुमां हो..
तुम दिलबर हो..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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10/15/2018 09:19:00 AM
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रूमानियत..
Friday, February 2, 2018
'अश्क़-ए-प्याले..'

...
"दोस्त थे जो..
आज कतराते हैं..
मर्ज़ पुराने..
चलो, सहलाते हैं..
कौन समझे..
दर्द मेरा..
कहाँ कोई..
रहा सवेरा..
यादें जवां..
साथ रखना..
मोहब्बत रवां..
बेमौसम चखना..
भुलाऊँ कैसे..
अश्क़-ए-प्याले..
मेरे अपने..
उसके हवाले..
दुआ माँगू..
पल-पल..
रहना खुशदिल..
कोई हलचल..!!"
...
--#दर्द कैसे-कैसे..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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2/02/2018 09:46:00 AM
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दोस्ती..
Monday, January 22, 2018
'सिलवटें..'

...
"माँगा होता..
काश तुमने..
मोहब्बत का सफहा कोई..
भेज देता..
पोर का एहसास वहीं..
सिलवटें उलझतीं थीं..
छुअन को अपनी..
'जानां' जब आ गया..
जुबां पे तुम्हारे..
कहो..कैसे छोड़ दूँ..
ख़लिश सिरहाने..
वज़ूद चाहे 'नाम' अपना..
क्या इरादा इस 'शाम' सजना..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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1/22/2018 10:14:00 AM
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बेबाक हरारत..
Sunday, December 31, 2017
'मियाद आसमां की..'

...
"मोहब्बत की ख़ुशबू
या देह की सुगंध..
आलिंगन यार का..
या गिरफ़्त महबूब की..
जानते हो न..
बेइंतिहां चाहती हूँ तुम्हें..
कुछ सफ़हे ज़िंदाबाद रहते हैं..
औ' कुछ ज़िंदादिली की मिसाल..
मियाद आसमां की भी रही होगी..
बेसबब टंगे होते रेज़ा-रेज़ा सितारे..!!"
...
--#दर्द कैसे-कैसे..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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12/31/2017 10:29:00 AM
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बेज़ुबां ज़ख्म..
'नये साल की एवज़ में..'

नया साल क्या लाएगा? आज जब मस्तिष्क ने पूछ ही लिया तो अब लिखना पड़ेगा..
#जां..
"मेरी रहगुज़र के सौदागर..
मेरी आहों के समंदर..
मेरे अलाव के शहंशाह..
मेरे एहसासों के कहकशां..
तेरी इक छुअन से पिघलता जिस्म..तेरी आहट से मचलता दिन.. तुम गहरे..बहुत गहरे जमे हो जिगर के गाँव..
फ़क़त इतना जान लो.. गर जाना चाहो तो चले जाना..मेरी मुहब्बत के मखमली सेज़ पर बिछी रहेगी ता-उम्र..तेरे पहले बोसे की निशानी..!!
आज़ादी मुबारक़, जां.. नये साल का नया हिसाब = वफ़ा + हरारत..;)
जब शामिल मुझमें हर शज़र..और महसूस होते इस कदर के रातें तुम बिन कटतीं ही नहीं..तो सुनते जाना - तू नहीं तो गुलाबी जाड़े की धूप आषाढ़ की तपती रेत..!!"
...
--#किस्से मोहब्बत के रंग वाले..💝
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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12/31/2017 10:23:00 AM
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बेबाक हरारत..
'मोटिवेशनल धक्के..'

...
"चाहत ज़िन्दगी से रखना बहुत, दोस्तों.. लिहाफ़ में इसके काँटों में लिपटे फूल मिलेंगे.. मेरी उँगलियों के पोर जब-जब भी इन काँटों से सराबोर हुए, एक टीस तो उठी ही.. तो क्या हुआ जो पाया नहीं मुकाम अब तक, थका नहीं तो रुक कैसे जाऊँ..
वैसे, मन थक जाये तो देह की स्फूर्ति भी किस काम की??
'चलते जाना ही ध्येय है', मेरा.... ज़िंदगी और लोग डिमांडिंग ही रहेंगे, जानती हूँ.. पर मन का टैम्परेचर ही डिसाइडिंग फैक्टर होता है.. गो फ़ॉर इट, ए-खानाबदोश..
मंज़िल कॉलिंग!"
...
--#मोटिवेशनल धक्के..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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12/31/2017 10:06:00 AM
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प्रेरणादायी सन्देश..
Friday, October 6, 2017
'जस्ट माइन चाँद..'

...
"लिखने के अपने रीज़न्स रहे हैं..
हमेशा से..
चंद लम्हों को..
गुज़ारिश की छूट नहीं..
रूमानियत का हैंगओवर..
दिल को तड़पाता क्यों है..
कुछ अनकहे-अंहर्ड सीक्रेट्स..
बेवज़ह पलते रेशमी रात..
फैसिनेशन के हनी-ट्रैप में..
पूर्णिमा की शीतलता घुल गयी..
तुम्हें बचपन से बैंचमार्क मान..
कितने लफ्ज़ तराशे..
कितने ऑफबीट थॉट्स को..
रूह के बेसमैंट में..
फुल-स्विंग आज़ादी दी..
आज लाइफ के..
जिस क्रॉसरोड ने..
बेहिसाब तन्हाई के मटेरियल दिए..
तुमने सिर्फ़ साथ रहने का..
कमिटमैन्ट ऑफलोड किया..
हाँ..
आई एक्सेप्ट दिस ट्रूथ..
यू हैव बीन माय फर्स्ट लव..
और..हाँ..
तुम ही रहोगे..
ता-उम्र..
जिसे देख मेरी हार्टबीट स्किप हो..
मेरे प्यारे..
माइन..जस्ट माइन..
शरद के चाँद..<3!!"
...
--रोमांस की एक कथा..चाँदनी की रज़ा..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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10/06/2017 11:14:00 AM
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रूमानियत..
'मुहब्बत के पैमाने..'

...
"जिस्म पे तेरे..
निशां जितने..
मुहब्बत के..
पैमाने उतने..
लकीरों के खेल..
सजते जहाँ..
मुझे पाना..
एकदम वहाँ..
रवायत-ए-नज़्म..
चुका आते हैं..
चल आज फिर..
लफ्ज़ गहराते हैं..
मतला-रदीफ़..
कौन जाने..
तेरी आगोश..
इक मुझे पुकारे..
दरमियां ख़लिश..
इक मौज़ूद..
ख़ुमारी बेपनाह..
मेरे महबूब..
आवारगी के..
डेरे में..
हम-तुम..
उस घेरे में..!!"
...
--दास्तान-ए-मोहब्बत..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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10/06/2017 11:06:00 AM
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बेबाक हरारत..
Wednesday, July 26, 2017
'रजनीगंधा ..'
...
"रजनीगंधा का फूल..
अब तक महकता है..
उस उर्दू-हिंदी डिक्शनरी में..
हर बार उठाती हूँ..
शेल्फ से जब..
उंगलियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद..
महसूस कर लेतीं हैं..
रूह तुम्हारी..
सफ़ेद पंखुरियाँ अब सफ़ेद कहाँ..
तेरी सौंधी खश्बू..
रेशे-रेशे में उतर आई है..
छप गयी है उस पन्ने पे..
तस्वीर तेरी..
पोर से बह चली हरारत कोई..
तेरी गिरफ़्त के जाम..
सुलगा रहे..'कैफ़ियत के दाम'..
लिखना-पढ़ना काफ़ूर हुआ..
मिलन जब उनसे यूँ हुआ..
हर्फ़ भुला रहे..राग़ सारे..
लुटा रहे..'हमारे दाग़' सारे..
शिराओं के ज़ख्म उभरने लगे..
तेरी छुअन को तरसने लगे..
हरी कहाँ अब..रजनीगंधा की डाली..
बेबसी दिखा रही..अदा निराली..
चले आओ..जां..
कागज़ को छू..
मुझे ज़िंदा कर दो..
भर दो..
महकती साँसें..
चहकती आहें..
पोर का सुकूं..
और..
इसकी सिलवटों में..
सिलवटें हमारी..!!"
...
--तुमको भी बहुत पसंद है न..रजनीगंधा की सौंधी सुगंध..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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7/26/2017 07:42:00 AM
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बस यूँ ही..
Sunday, June 4, 2017
'जाड़े की दस्तक..'
...
"जाड़े की दस्तक से ही आया था..
प्यार तुम्हारा..
इस बरस पूरे हो जाएँगे..
6 बसंत..6 ज्येष्ठ..6 सावन..और 6 कार्तिक..
हाँ, तब ही मिले थे तुम..
जुदाई-मिलन की कशिश से बंधे..
तुम-हम..
थिक्स-थिंस..से ग्रो होते..
हम-तुम..
रतजगे-अर्ली मोर्निंगज़..से रिफ्रेश होते..
तुम-हम..
ह्यूमिड दोपहर-मेस्मेराइज़िंग शाम..से फ्लोट होते..
हम-तुम..
औ..
इक शब..
तुम्हें लाइव देखना..जी भर..
दो मिनट की डैडलाइन का..
ग्यारह मिनट चौबीस सैकंड होना..
#जां..
आपका होना..
मेरा होना है..!!"
...
--#जां, मुबारक़..गिरफ़्त बाँहों-बोसों की..औ' तुम-हम..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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6/04/2017 04:30:00 AM
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रूमानियत..
Sunday, May 21, 2017
'सिलवट के घेरे..'
...
"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..
आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"
...
"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..
आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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5/21/2017 08:34:00 AM
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Sunday, April 2, 2017
'मैत्री की गोष्ठी..'

#प्रेमराग
...
"तेरी-मेरी द्विपक्षीय वार्ता की महत्वपूर्ण नीति..
विकल्प चुन सकूँ..
ऐसी असाधारण कूटनीति कहाँ से लाऊँ..
संबंध प्रगाढ़ कर सकूँ..
ऐसी ज़मीनी गूढ़ता कहाँ से लाऊँ..
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समझौता..
ऐसी गरमजोशी कहाँ से लाऊँ..
मुद्दे ज्ञापित कर सकूँ..
ऐसा प्रचारक कहाँ से लाऊँ..
वैचारिक मतभेद में भी कड़ी निजता..
अंततः दस्तावेज पर अंकित..
तुम्हारे-मेरे हस्ताक्षर..!!"
...
--मैत्री की गोष्ठी और समय का आँकड़ा..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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4/02/2017 08:21:00 AM
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रूमानियत..
Sunday, October 2, 2016
'क्रीमी अफेयर..'

...
"हाये..
उसकी पहली छुअन से..
मैं भीतर तक घुल गयी..
मिठास थी कुछ ऐसी..
मैं मचलती गयी..
कसमसा मिले जो लब..
कितने प्रवाह ढलती गयी..
हॉट स्टीमी जिस्म..
औ' वो स्याह रात..
एक्ज़ोटिक छाँव में उसकी..
कितने सिफ़र पलती गयी..
शामो-सहर..
इस क्रीमी अफेयर..
कितने दिल मलती गयी..
आह्ह..मेरी कॉफ़ी का..
सबसे अडोरेबल प्याला..!!"
...
--पल मस्ती वाले..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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10/02/2016 11:06:00 AM
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हल्का-फुल्का..
Tuesday, September 27, 2016
'मिस कॉल की गाँठ..'

#जां
...
"मेरे जीवन के उपन्यास का कलेवर..
पृष्ठ संख्या ११६ पे अंकित..
वो सुनहरा पैगाम..
दृष्टिगत होती..
तुम्हारी नज़र..
खिलता-महकता..
'दिल धड़कने का सबब'..
यूँ तो पाँच साल..
और यूँ पूरी उम्र..
इक पल का सुकूं..
दूजे पे कसक..
पल-पल मुझे संवारना..
रेज़ा-रेज़ा दुलारना..
प्रेम के रूप हैं बहुत..
रोज़ माँगना..
इक गिरफ़्त..
रोज़ हारना..
ज़ालिम हुड़क..
कहो, कितने लफ्ज़ सजाऊँ..
सूती चादर के अलाव..
कितने 'लव-लैटर्स' करेंगे..
फ़ैसले पे बचाव..
३० दिन..१० लफ्ज़..
कुल जोड़ -- ३००..
पूरी हो..इस दफ़ा..
ये मुराद..
रातों के मोती..
मिस कॉल की गाँठ..
रोशन तुमसे..
मेरा दहकता ख्व़ाब..
मेरी अल्हड़ आवारगी..
तेरी कट्टर 'ना'..
आलिंगन..बोसे..
औ' वो बेबस रात..
मेरे केस की सुनवाई..
तेरी ही अदालत में..
मेरे ब्यान..
तेरी ही हिफाज़त में..!!"
...
--डिमांड शुड बी इक्यूअल टू सप्लाई.. <3 = <3 है न, #जां..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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9/27/2016 11:07:00 AM
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रूमानियत..
Monday, September 26, 2016
'जिस्म..मुहब्बत वाला..'

...
"दिनभर की भाग-दौड़ में..
उग आते हैं..
नाराज़गी के छोटे-छोटे फ़ाये..
बनते-बिगड़ते काम में..
झुलस जाते हैं..
मासूमियत के प्यारे साये..
छल-कपट के शोर में..
ठिठक जाते हैं..
हँसी के अल्हड़ पाये..
ओढ़ लेती है शब..
थक-हार के चादर..
मैं निकलता हूँ..
अपने जिस्म से..
तेरी रूह तक..
दूसरे प्रहर के ताने-बाने..
वो स्पेशल रतजगे..
तैरते सहर तक..
फ़िर पहन लेता हूँ..
जिस्म..मुहब्बत वाला..
बाँध कमीज़ पर..
निकल जाता हूँ..
उसी भाग-दौड़ में..
हवाले तुम्हारे जिस्म अपना..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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9/26/2016 11:40:00 AM
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रूमानियत..
'दहलीज़-ए-रूह..'

#जां
...
"आज दिल मचल गया..
कुछ ऐसे..
थाम लो..
अपने आँचल जैसे..
बंधा रहूँ..
वक़्त-बेवक़्त..
कलाई पे..
तेरी घड़ी जैसे..
लटकता रहूँ..
साँस-दर-साँस..
दहलीज़-ए-रूह..
तेरी चेन जैसे..
कस लो गिरफ़्त..
दम निकले..
रेज़ा-रेज़ा..
तेरी आह जैसे..!!"
...
--दिल धड़कने का सबब याद आया..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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9/26/2016 11:19:00 AM
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बेबाक हरारत..
'शिखर..'

...
"जीवन की तलाश में..
फिरता रहा..
कितने अधर..
प्रस्फुटित तेरे गर्भ में..
मेरा हर शिखर..
तू समय की धार..
मैं तेरा भँवर..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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9/26/2016 11:09:00 AM
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ज़िन्दगी..
Monday, May 16, 2016
'मीठे एहसास'..

#जां
...
"सुना है..
तुम 'लव-गुरु' हो..
पल में ही लोगों की मुश्किलें हर देते हो..
कोई ब्रेक-अप हो..
या..
हो इश्क़ में मोराल डाउन..
कोई टीनएजर हो..
या..
मिड २०ज़ के डिलेमा वाला..
कोई अधेड़ तलाशता हो साथी नया..
या..
कोई अपने बिछड़े बीलवेड की यादें संजोता..
सबको कम्फर्ट करते-करते..
अपने एहसास भूल गये..शायद..
रूह के छोर पे..
देखो..उग आये हैं..
कितने स्याह जामुन..
आओ न..#जां..
मैं चखकर देती हूँ..
वो 'मीठे एहसास'..
के ज़बां पे आने दो..
मेरे रस की बूँदें..
मेरी उल्फ़त के निशां..
दिन भर दुनिया से छुपा..
घूमते रहना..चाहे जहाँ..!!"
...
--गाढ़े रंग..मुहब्बत वाले..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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5/16/2016 02:49:00 AM
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रूमानियत..
Tuesday, April 12, 2016
'चलना ही ध्येय हो..'

...
"चलते चल, पथिक..
डगर का अस्तित्व..
तुझसे ही होगा..
बाँधते चल, नाविक..
लहर का सत्त्व..
तुझसे ही होगा..
संवारते चल, चितेरे..
महल का तत्व..
तुझसे ही होगा..
ढालते चल, विद्यार्थी..
पहल का रक्त..
तुझसे ही होगा..!!"
...
--चलना ही ध्येय हो..प्रतिक्षण..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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4/12/2016 01:31:00 PM
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Thursday, April 7, 2016
'अक्षरों के पल्लवन..'

...
"स्मृति-पटल पर..
पोषित अंतर्मन पर..
ओष्ट-धरा पर..
नेत्र-द्वार पर..
अक्षरों के पल्लवन..
स्नेह के प्याले..
गति का मान..
लय का श्रम..
लक्ष्य का भान..
संबंधों के स्वास्थ्य..
माधुर्य से परिपूर्ण रहें..
क्षण-क्षण..
प्रति क्षण..
आभार..मेरे #जां..!!"
...
--स्पर्श-चिकित्सा का नया अध्याय..heart emoticon आज स्वास्थ्य-दिवस है..#जां..
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4/07/2016 09:51:00 AM
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'इस साल की दुआ..'

#जां
...
"कुछ रिश्तों की नींव..
बिन मिले ही गहरा जाती है..
प्रत्यक्ष की चाह भी..
लोप हो जाती है..
कुछ पल गहरा जाते हैं..
मिलन की आस..
अधूरी..अधपकी..वहशत..
जीने की प्यास..
#जां..
मेरी रूह पे निशां गहरा रहे हैं..
जाने क्यूँ..तुम्हें ही पुकार रहे..
इस साल की दुआ..
अगले मौसम में खिले..
चाहत की दूरी..
होठों से मिले..
तुम लिख भेजना..
मेरा ड्यू लैटर..
पढ़ जिसे पी लूँगी..
जुदाई का चैप्टर..
बिन मिले..
जुदा कैसे हुए..
बिन मिले..
एक कैसे हुए..!!"
...
--दर्द..जाने कैसे-कैसे..
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4/07/2016 09:45:00 AM
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रूमानियत..
Wednesday, March 30, 2016
'सितारों के दामन..'

...
"दफ़न होने को बेक़रार बैठी हूँ..
मय्यत पे अपनी..बेज़ार बैठी हूँ..
चाहा था..बेहिसाब बेख़ौफ़..तुझे..
साया-ए-उम्मीद..हार बैठी हूँ..
फ़िक्र न करना..ए-हमजलीस..
गिलाफ़-ए-रूह..मार बैठी हूँ..
करो रुकसत..ख्वाहिश-ए-सुकून..
सितारों के दामन..उतार बैठी हूँ..!!"
...
--प्रिय मित्र की विदाई पे..उठते भाव कई.. वो कह गए, हम लिखते अच्छा हैं..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
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3/30/2016 11:30:00 AM
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बेज़ुबां ज़ख्म..