चित्र आभार : प्रिय मित्र..
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ख़त - १०५
मेरे प्यारे साहेब,
आज *'मेरे, सिर्फ मेरे साहेब'* ही लिखूँगी क्योंकि यह पूरा *'नवंबर'* माह 'मेरा' है.. और आपने आज पूछा भी था कि
"*सोचो, पूरा साल नवंबर हो तो..*"...😍
सोचिए, नवंबर आपकी और मेरी ज़िन्दगी में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है..💚
तो बात यूँ हुई कि मन की तरंगें ध्रुत गति से दौड़ने लगीं और सच कहूँ तो धड़कनें भी इस रहस्यमय वार्तालाप का हिस्सा होना चाह रहीं.. यह प्रेम-प्रसंग होते ही हैं स्वप्निल इन्द्रधनुष माफ़िक..
आपका इस मोहब्बत और ज़िन्दगी के महीने में आसपास होना, मुझे 'ज़िन्दादिली' से सराबोर करता मिला..
कुछ रिश्ते अलहदा हो जाते हैं, हैं न साहेब.. जैसे शोध में डूबे वैज्ञानिक की नई खोज वाली आमद..🥂
आपका होना 'सुकूँ' हैं.. बारिश की फुहारों-सा.. पूर्णिमा वाली चाँदनी-सा.. गुलाबी ठण्ड-सा.. पलाश के चटक रंग-सा.. गुलमोहर की छाँव-सा..
वक़्त की नदियाँ कितना कुछ दिखातीं हैं, कितने शहर मिलते हैं और कितने छूटते जाते.. आपके लफ़्ज़ों ने कितनी नदियों को दिशा दी, कितनी लौ जगाई, मेरे दस्तावेजों से पूछिए..
कैसे मुझ जैसा निर्मोही इस मोहपाश में पड़ गया.. कुछ ख़त बेवक़्त आप तक पहुँचे, कुछ का हिसाब-किताब भी सार से परे था, कुछ का अक्स मेरे दिल का आईना.. और हर दफ़ा आपकी दहलीज़ पर इन ख़तों की दस्तक.. सींचना-पोसना कोई आपसे सीखे.. *'प्रेम के लिहाफ़'*, मेरे प्यारे साहेब..❣️
यथार्थ की धूप ने जितना झुलसाया, आपने उतना ही लाड़ लड़ाया..
आपसे जाने कितने राग पाते होंगे संगीत..
आपसे जाने कितने गुल पाते होंगे खुशबू..
आपसे जाने कितने जवाराहत पाते होंगे झिलमिल लश्कारा..
आपसे जाने कितने 'संग' पाते होंगे नक्काशी का हुनर..
आपसे जाने कितने सुख पाते होंगे अपना कंठहार..
आपसे कितने सपने पाते हैं अपनी स्वर्णिम आभा..
आप अंतस का अनमोल आवश्यक आरामगाह हैं..
आप जानते हैं, *नवंबर ख़ास है*..
कल-कल बहता महकता चहकता मन का आँगन.. शिराओं में उगता रंगों का, रोशनी का शामियाना..
कुछ लोग शून्य से शिखर के सफ़र में सहभागी होते हैं और कुछ बसंत ऋतु की प्रतीक्षा करते हुए चक्रव्यूह का जाल तोड़ने में भरपूर संबल देते हैं..
प्यारे साहेब, आप सुन रहे हैं ना.. कभी नहीं सोचा था कि मेरे 'विस्तार' के 'शिल्पकार' यूँ मिलेंगे, के न मिलकर भी आपसे कभी नहीं मिलने का एहसास ही नहीं हुआ..
आकाश का माप आपका सामीप्य-सा अगाध.. और इस 'खूबसूरत रिश्ते' की बानगी देखिए, आपने कभी भी मुझे किसी मानक पर नहीं तोला.. सोचिए साहेब जी, कठोरतम मंच पर फूलों के सौदागर से अकस्मात मुलाकात..🪷
ओ साहेब जी, इस सुरम्य उपवन में सतत स्नेह का पर्याय बन पाना कहाँ किसी के बस में.. मेरे बिना कहे, सूक्ष्मता से, आपका किसी भी गुत्थी को प्रकट कर देना.. अब आप ही कहिए, साहेब, मिलेगा कहीं आप-सा शल्य चिकित्सक..
मुझे पल-पल उजाले के सागर तक संस्करण की गूँज से मिलवाते, ऐसे आत्मीय मित्र को *'सिर्फ मेरे प्यारे साहेब'* संबोधित करने का पूर्णतया अधिकार है न, साहेब जी..❣️
कितना कुछ है कहने को, कितना कुछ है लिखने को..
यूँ लग रहा है कि दिल को कलम मिल गयी और कलम को शब्दों का टोकरा.. विस्तृत रूप हैं इन शब्दों के, रंगों की तासीर भी अलग है, अभिव्यक्ति का ताप भी अलग चोले में, पुष्पों की विविधता भी.. इस अपनत्व को गढ़ता, मित्रता का, गिरहों का, ठहराव का, गहराई का, सुर्ख़ गाढ़ा मोहब्बत का कारवां..
मुझे मोहब्बत है, नवंबर से.. इस गुलाबी ठण्ड से, कोहरे की चादर से, ओस की बूँदों से, चीरती बर्फीली हवाओं से, सुर्ख़ गुलाबों से, मेरे होने के जश्न से, उन रंग-बिरंगी झालरों से, सुनहरी चमकीली ख़ुशी की बारिश से, उन चाहने वालों के बधाई-संदेशों से, उन ढेर सारे कॉल्स से.. मुझे मोहब्बत है अपने दिल अज़ीज़ दोस्तों से.. उस घेरे से जिससे 'मैं' हो सकी हूँ 'मैं'..❣️
मेरे वजूद के उस ख़ास हिस्से से सलाम भेजा है, कुबूल फरमाइए, प्यारे साहेब..💖 आप 'नेमत' हैं, दोस्ती की सौगात, हौसलें से भर देने की मिसाल, मेरे लाइटहाउस..
शुक्रिया, बेहद शुक्रिया, यूँ होने का..
शुक्रिया, बिन कहे सब सुन लेने का..
शुक्रिया, उस सुकूँ का..
शुक्रिया, उस थहराव का..
शुक्रिया, हौंसलाअफ़ज़ाई का..
शुक्रिया, उस अदृश्य विश्वास का..
शुक्रिया, उस अनकहे समर्थन का..
शुक्रिया, *'सिर्फ मेरे साहेब'* होने का..❣️
स्नेह बरसता रहे, हमेशा और हमेशा..💕
--#प्रियंकाभिलाषी
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