Friday, March 31, 2023

'इंतेज़ार के बीज..'




चित्र आभार - जिनकी भी हो!!
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"इक रोज़ उसने कहा था कि "सबसे बुरा होता है, प्रेम का इंतज़ार करना"... प्रेम का स्वरूप समझना, स्वयं में उतारना, आत्मसात करना कठिन प्रतीत हो, परंतु जब अंतस में उतरे, समस्त आचार-विचार-व्यवहार सबकी दिशा बदल जाती है.. 

एक अद्भुत संगम, एक अविरल धारा, एक अतुल्य भाव जिसमें बहना ही एकमात्र विकल्प!

एक ऐसी मनोस्थिति जहाँ समर्पण और समर्पण ही जीवन-दर्पण होता है.. एक तिलिस्म जिससे अछूता एक पल नहीं और उससे सुंदर व्याख्या नहीं..

पर उसने कहा था, हाले-दिल..
उसने जिया था, वो दौर..
उसने लिखा था, दर्द-ए-एहसास..
उसने पिया था, मोहब्बत-ए-राज़..

अब तलक 'इंतज़ार के बीज' रोपित होने के इंतज़ार में हैं और कोई उन्हें 'सींचने' के लिए तड़प रहा..

किसी ने उस 'हसीं' मुलाकात के बाद कहा था, "तुमसे मिलना अधूरा ही रहा इस दफ़ा".. उस गुलाबी शहर की रंगीं गलियां अब तक उसकी आस में रुकीं हैं, के 'इक रोज़ दीदार होगा!'..

उसकी बज़्म में नगमा कोई मेरा गूंजेंगा.. मैं लिखूँगी नज़्म रूमानी और उसके होंठों पर ज़िक्र मेरा होगा!

तुम जानेमन हो! मेरे होने का वजूद, मेरी रूह की दराज़ के महबूब!"
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Thursday, March 30, 2023

'दिलदार..'

चित्र आभार - प्रिय मित्र..

यार साहेब, कबसे आपको तलाश रही और यह भी जानती हूँ कि आप दूर कभी हुए ही नहीं... जो भ्रम हैं, दिल के हैं, नज़र के हैं.. 

किसी संबंध की नींव जैसे आज़ादी वाली प्रसन्नता.. मन उड़ता हुआ किसी अजनबी के पास जा बैठे और सुकूँ के पल जी आए, पी आए, फ़क़त और क्या चाहे कोई..

कमल की कोमल पंखुड़ियाँ और आत्मीयता की अनवरत परत, कोई कैसे रोक सके स्वयं को आपके मोहपाश में बंधने से.. आप हौंसले की मशाल और सकारात्मकता की मिसाल हैं..

जब कभी मन स्वयं से प्रश्न करे, अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए तो आपके शब्द राह दिखाते हैं.. 'चारागर' ऐसे ही होते हैं ना??

नदी-सी थाह रखने वाले, ओ साहेब जी, कितनी दफ़ा परिस्थितियों का जाल अपना वर्चस्व कायम करने के लिए मुझे खींचता अपनी ओर, पर मैं आपके अनुभव में पिरोई माला से लौट आती हूँ सकुशल..
कभी पर्वत-सा साहस भरते हैं, कभी भाँप-सा ताप... तिलिस्मी 'जादूगर' ऐसे ही होते हैं ना??

खिलखिलाहट के झरोखे, आँखों में चमक, गालों पर गड्ढे, मदमस्त चहकता दिल.. अपनी चाहत के रंग से तन-मन भिगोने वाले 'रंगरेज़' ऐसे ही होते हैं ना??

जिस सुकूँ से लफ्ज़ तराश दें, मन की उड़ानें.. जिस गर्मजोशी से भर सकें, दरिया की मचानें.. जिस नरमी से सहला दें, सूत की दुकानें.. अल्हड़ बहने दें, पोरों से पैमाने.. सिलवटों से लहराते पेशानी चमकाते, 'दिलदार' ऐसे ही होते हैं ना??

*आप स्नेह-पुंज हैं, साहेब..!*

उपमाएँ करतीं सवाल..
किसके लिए भरते थाल..
शख्स खास होगा, थामी..
जिसने दिल की पाल..!!

--#प्रियंकाभिलाषी