"और मुझे लिखने थे किस्से..कभी दर्द के, फ़रेब के, इस्तेमाल किए जाने के, आउटसाइडर ट्रीट किए जाने के, डंप हुए जाने के और यह भी जतलाये जाने के कि "तुम हो ही कौन?? क्या वजूद?? क्या ठिकाना? क्या शौहरत??? क्या रुतबा??"...
पर कुछ तो है ज़िंदगी में, कुछ दोस्त ऐसे मिले, वक़्त की आंधियाँ भी अपना ज़ोर न दिखा सकीं..
वो दिलदार, जो शामो-सहर थामे रहे मशाल-ए-हौंसला..
वो बेहतरीन सौदागर, जो रोशनी की सुबह से राब्ता करवाते रहे.. वो मज़बूत दरख़्त, जो छाँव में अपनी सींचते रहे..
वो इंद्रधनुषी खजाने, जो मंज़र संवारते रहे..
वो चमकीले सितारे, जो अपनी नरम सेज पर सहलाते रहे..
वो अज़ीज़ मेहमां, जो मेरा ठौर हो गए..
तो भुला दूँ वो जो अपना था ही नहीं कभी..या सहज ही सिमट जाऊँ?? या बाँध दूँ कलाई पर वादे सारे या संग हो जाऊँ??
तुम ही कहो, ए-दोस्त.. किस शज़र जाऊँ..!!"
...
--#बस यूँ ही..