Thursday, February 28, 2013

'विजयी-पताका..'




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"बाँध तस्में चल पड़ी..
जीवन-डगर पर अकेली..
कोई संगी-साथी नहीं...
जीवन दुर्लभ पहेली..

कठिन हो लक्ष्य..
दुर्गम हो राहें..
साधना ही होगा..
कर विसर्जित आहें..

समय अल्प बचा है..
लक्ष्य दूर खड़ा है..
थकना रुकना अब नहीं..
कार्य बहुत पड़ा है..

परिश्रम, धैर्य, लगन..
पिरो ह्रदय-धरातल पर..
विजयी-पताका सुन्दर..
लहरायेंगे आकाश-थल पर..!!"

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Wednesday, February 27, 2013

'आशियाना..'

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"चल बंद हो जायें..
साथ कहीं गुम जायें..
ना ढूँढ सके कोई हमें..
आ, ऐसा आशियाना बनायें..!!"

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'मिलन की रात..'




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"ना जाने कब से तड़प रही थी..तेरी आवाज़ सुनने को.. अटके हर्फ़..तंग साँसें..उँगलियाँ जम गयीं हों जैसे..सब कुछ बर्बाद..बिन तेरे--कुछ नहीं कामिल..!!!!

तलाशो ऐसा दरबार, जहाँ फैसला हो..दूरियां मिट गुल खिलें..हक़ में आये मिलन की रात..!!"

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--बातें बेवज़ह..

Tuesday, February 26, 2013

'तेरा एहसास..'



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"क्यूँ चले दूर इतना..
पा भी ना सकूँ..
तेरा एहसास..
छू भी ना सकूँ..
तेरे जज़्बात..

हर जंग हारा..
अब तलक..
न सोचा था..
ऐसा वक़्त आयेगा..
जुबां पे नाम मेरा..
जगह भी न पायेगा..

कहाँ भूल हुई..
कहाँ कम रहा प्यार..
बाँट मुझको..
चला गया यार..

देखती हूँ..
बीता वक़्त..
आते हो याद..

बेबस नासूर..
ख़ाली लिहाफ़..
बिखरी खामोशी..
स्याह रात..

और..

इक बर्बाद..
बेगैरत..
ख़ानाबदोश..
मैं..!"

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Friday, February 22, 2013

'प्यार-प्यार..'



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"तुम्हारी हर धड़कन क्यूँ लेती है मेरा नाम..?? फिर तुम मुझे जानते ही कितना हो..कोई १५ दिन पुरानी ही होगी ना हमारी मुलाकात.. क्यूँ इतनी गहरी उतर गयी है मेरी खुशबू तुम्हारे ज़ेहन में कि अब उसके बिना तुम मचल जाते हो..?? तुम्हारी हर कोशिका क्यूँ मुझे महसूस करना चाहती है..??

क्यूँ पिघल गयी तुम्हारी बेबाकी..?? क्यूँ खिल गया आँखों का सितारा मेरी आवाज़ सुन..?? क्यूँ मेरे इस बुखार से तुम्हारा मन भी तप-सा गया था..?? क्यूँ मुझसे बात करने के ख़ातिर ताक पर रख देते हो अपने ख़ूनी-रिश्ते..?? क्यूँ बदल दिया अपना समय इस अंतरजाल पर आने का..???

तुम प्यार-प्यार का दावा करते रहते थे..अब कहो...प्यार वो था जो अब तक तुमने जाना था....या फिर ये सब है..??"

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---अनकहे लफ्ज़..गैर-सा इंतज़ार..

Thursday, February 14, 2013

'राग दरबारी..'



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"क्यूँ गहरा सार था तेरी हर इक बात में..शब्दों के पीछे छिपे उन अनगिनत विचारों में बंधा था स्मृतियों का ठेला.. जानते थे मेरी मनोस्थिति, इसीलिए रोक लेते थे उस सफ़ेद दरिया का ज्वारभाटा भी..है ना..??? नकरात्मक गोलार्ध को तोड़ने के लिए बिछाते थे रेशम-से कोमल सकरात्मक तंतु..और उसपर छिड़कते जाते थे--जीवन से लबालब संगीतबद्ध शब्द-माल..!!!

इस सहृदयता को संजो दराज़ की 'राग दरबारी' में टांग दिया है..!!"

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---कुछ स्मृतियाँ धारा, राह, लक्ष्य सब बदल जाती हैं..

'ऐश्वर्या-पोलू : प्रेम की किश्तें - भाग ५..'






पाँचवी किश्त..शैतानी और मस्ती भरी..

***पाँचवा पत्र***

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प्रिय पोलू,

आज वैलेंटाइन'स डे है फिर भी हम जुदा हैं..मिल भी नहीं सकते.. आज सब रैलेतिव्ज़ डिनर पर आ रहे हैं..क्या करूँ, भाग भी नहीं सकती.. आज रात को सबके सोने के बाद मिलें, अपनी फैवी प्लेस पर..??

बहुत कुछ कहना है..तुम्हारे बिना कैसे गुज़रे ये दिन, ये रातें..सिर्फ हमारा दिल ही जाने..!!!

तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी,
ऐश..

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'ऐश्वर्या-पोलू : प्रेम की किश्तें - भाग ४..'







चौथी किश्त..शैतानी और मस्ती भरी..

***चौथा पत्र***

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प्रिय ऐश,

आज वैलेंटाइन'स डे है और तुम इतने दिनों से मिली भी नहीं हो.. लैट'स गो आउट फॉर डिनर टुनाइट, एक सरप्राइज है तुम्हारे लिए..!! ढेर सारी बातें करनी हैं..कितना कुछ कहना-सुनना है.. तुम भी इतने दिन कहाँ गायब रहीं, आई मिस्स्ड यू बेबी..!!!

नाओ, आई गौट्टा रश.. शाम को मिलते हैं.. सात बजे, गैलेक्सी होटल..!!

तुम्हारा..
पोलू..

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Thursday, February 7, 2013

'चाहत..'




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"तुझे जो चाहा..
फिर चाह सके ना..
कभी कुछ..

पाया तुझे..
ना चाहा पाना..
कोई और..

इक तू ही चाहत..
पाना तुझे..
अपनी कैफ़ियत..!!"

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Sunday, February 3, 2013

'एक सलाम..'




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"रूह मर गयी, आज फिर..चिल्ला-चिल्ला थक गयी आवाज़ की गलियाँ भी.. लफ्ज़ जम गये..दो पल के लिये साँसें थम गयीं.. इक शख्स की खातिर कितना कुछ जी गयी, कितना कुछ मर गया.. पी आई लाखों समंदर, फिर भी दरिया प्यासा रह गया..!!

क्या किया तूने, लज्ज़त टूट-टूट रोने लगी..दहाड़ रहीं हैं खामोशियाँ, बेज़ुबां निगाहें.. बेरहम..बेवफ़ा तन्हाई..इक तू ही मेरी अपनी..तेरे पहलू में बेशुमार आँसू दफ़्न हुए होंगे.. तपने दे आँच पे उसकी, मेरी आहें.. सुलगने दे लकीरों के रेले, मिट जाने दे रूमानी फेरे..!!!"

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---कभी-कभी अजनबी बन जाते हैं खुद से मिलने के सबब.. एक सलाम उनके नाम..

'ए-मेहरबां..'





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"प्यार ना कर मुझसे..ए-मेहरबां..
जो बिखरी..बहुत तड़पाऊँगी..
जलूँगी हर नफ्ज़..रेज़ा-रेज़ा..
छालों से..शोले सजाऊँगी..!!"

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'अदा..'





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"क़त्ल करने को काफी..तेरे लफ्ज़..
सज़ा देने को काफी..तेरी अदा..
दम तोडूँ गर, उफ़ ना करना..!!!"

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'बक्शी ज़िन्दगी तुझे..'





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"फ़ुर्सत के पल में मर जाना चाहती हूँ..आकाश को रंगों से सजाना चाहती हूँ, बिखेरना चाहती हूँ अपने पसंदीदा रजनीगंधा और गुलमोहर के फूल.. किसी की परवाह नहीं, ना ही कोई चाहत..!!

बहुत हुई मनमानी, अब ना चलेगी तेरी कहानी.. हर लफ्ज़ मेरा होगा, हर शै अपनी.. जा कर ले जो मन आये, बिछा दे बारूद के गोले, मिला दे नफ़रत के घेरे..कोई रोक सकता नहीं, माप सकता नहीं कोई मेरी गहराई..तू भूला मुझे, इसमें तेरी ही भलाई..!!!

ज़िंदा हूँ, अपने दम पे..साँस टूटेगी, आँख-नम से..!!!

जा, जी ले.. बक्शी ज़िन्दगी तुझे..!!"


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Saturday, February 2, 2013

'स्पंदन..'





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"तुम्हारा निर्मल विशाल ह्रदय रस-रंग में डुबो अनेकानेक तारामंडल की सैर करा जाता है..विस्तृत, विराट, व्यापक, समृद्ध, सुसज्जित और सुरीला--ऐसा ही है ना तुम्हारे वाद्य-यंत्र से निकलता संगीत, जो मेरी हर कोशिका को सजीव कर तुम्हारा स्पंदन और निखार जाती है..!!!"


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----नितांत एकाकी के कुछ अभिन्न क्षण..

Friday, February 1, 2013

'छुअन..'






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"हर शह उसकी..अपना क्या..
पिघलीं लकीरें..फ़क़त..छुअन से..!!"

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