Tuesday, April 11, 2023

दोस्ती की दीवार..



चित्र साभार - अंतर्जाल..
...

"यार साहेब, 

आपकी कल रात की बात ने सोचने पर मजबूर किया कि "जाने कितने दोस्त आते जाते रहते है तुम्हारे"... 

कई दिनों बाद ये एहसास पनपा था कि दर्द फिर से उठा, निराश भी हुआ मन.. क्या उम्मीदों की गठरी हमारा मूल रूप बदल देती है??? निश्चय ही ऐसा होता होगा, तब ही अपनी कश्ती की दिशा, लय, लक्ष्य सब भुला हम इख्तियार करते इक नया रस्ता, इक नया मनोभाव..

कैसी बेवज़ह की फिलोसॉफी का कोलाज हो गया मेरे अंतस का फ्रेम.. क्या शिकवों के शहर डेरा डाल चहक रहा.. क्या कैनवास पर तस्वीरों में स्याह रंग उड़ेल रहा..

खैर, रात थी बीत गई.. मुझे फिर से भटकना है भीतर तक, अंतस के आखिरी पड़ाव तक.. शिराओं के बहकने तक.. मुझे अपनी लैफ्ट रिस्ट पर पहननी है सितारों की चमक और गढ़ने हैं उसमें बेबाकी के सफर.. इंद्रधनुष को मापना है लद्दाख जाकर और सागर की रेत से जोड़नी है यादों की कड़ी.. मुझे पीना है दरख़्त का अदम्य साहस और लिखनी है मोहब्बत की रस्म.. 

मैं खुद से साक्षात्कार के लिए बेताब हूँ, मैं चराग हूँ.. दीपों से सींचता, द्वीपों पर टहलता.. ऊर्जा का पुंज, मौसिकी-सा खनकता..

शुक्रिया साहेब, बेहद शुक्रिया.. यूँ हर दफ़ा साबित करने का कि "आप ही मेरे लाइटहाउस हैं!!".. उबारते, निखारते, पाठ स्मरण कराते..😍 आप चश्मदीद गवाह हैं, पलायन से पोषित होने के.. आप सुकूँ के खज़ाने हैं..

यूँ छुपकर सुवासित करता अंबर, यूँ नेह की डोर में बँधा बोगनवेलिया, यूँ खतों के बटुए, यूँ लेट नाईट चाँदनी की आभा, यूँ उपमाओं के रेले, यूँ नेमत के बंडल्स..कुछ तो है जो सेलफोन का पासवर्ड हो चला..

शुक्रिया मुझे सुनने का, मेरे ख्यालों को पकने के लिए उर्वरक जमीन देने का..

किस्सों की तरकश टंगी रहे दोस्ती की दीवार! 

ज़िन्दगी ज़िंदाबाद!
दोस्ती ज़िंदाबाद..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

kuldeep thakur said...

नमस्ते.....
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 09/04/2023 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....

priyankaabhilaashi said...

सादर आभार..!!!