Friday, November 9, 2012

'मन की बगिया..'




...

"इक तेरा चित्र खिला जबसे..
मन की बगिया में..
उभर आये लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी पुष्प कितने..
बिखेरती है सूरज की आभा..
जब अपना स्वर्णिम..
लरजती है..
ओस की बूँद तभी..

चलो,
बहुत हुआ..
यूँ ना नश्वर को और नश्वर बनाओ..
समीप आ..
पुष्प अर्पण कर
प्रभुवर शीश नवाओ..!!"

...

3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

समय चक्र said...

badhiya rachana ... badhai

रश्मि प्रभा... said...

sarak,sundar bhaw

संजय भास्‍कर said...

आशाओं के जुगनुओं से जगमगाती बेहद सुन्दर रचना ...!!