Thursday, October 22, 2015
'संगदिल बहर..'
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"इंतज़ार ख़्वाब करने लगे हैं..और कितना तड़पेंगे.. इतने साल चुप-चाप बैठे रहे सबसे नीचे वाले दराज़ में..हाँ-हाँ दिल के सबसे नीचे वाले दराज़ में.. अब तो उनको भी अपने ख़्वाब पूरे कर लेने दो..!!!!
'जा जी ले अपनी ज़िन्दगी' टाइप्स... काश, इतना आसां होता न ये सब.. तो यूँ ही नहीं बिखरते हर शाम दहलीज़ पर मेरे अल्फ़ाज़ और उनकी संगदिल बहर..!!"
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--ज़िन्दगी की शायरी..स्याही की ज़बानी..
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ज़मीनी हकीक़त..
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