"काश ऐसा हो जाए..
देखूं जहाँ-जहाँ..
तू ही नज़र आये..
धड़कन हो मेरी..
गीत तेरे ही गायें..
पर..
होता कहाँ ऐसा है..
जो चाहो मिल जाए..
यथार्थ में जीना है..
समय कितने ही स्वप्न दिखाए..!!"
"ये शाम भी अजीब है..
दिन के रंग चुरा इठलाती है..
अपनी रंगत बढ़ा..
वाह-वाही पाती है..
क्यूँ ना ऐसा हो जाए..
उड़े जब-जब खुशबू..
सौंधी मिट्टी की..
ये मन मचल जाए..
थाम लूं..
आँचल तेरी यादों का..
और..
तू मुझ में समां जाए...!!!"
"क्या दोस्ती..
क्या नज़राना..
वक़्त की शाख..
उम्र भर का अफसाना..
बदल गया मिजाज़..
खुला जब मयखाना..
ज़मीन-ए-ख्वाब..
क्या जाने इतराना..
फ़क़त..वाज़ीब है..
यादों का शरमाना..!!!"