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"क्यूँ गहरा सार था तेरी हर इक बात में..शब्दों के पीछे छिपे उन अनगिनत विचारों में बंधा था स्मृतियों का ठेला.. जानते थे मेरी मनोस्थिति, इसीलिए रोक लेते थे उस सफ़ेद दरिया का ज्वारभाटा भी..है ना..??? नकरात्मक गोलार्ध को तोड़ने के लिए बिछाते थे रेशम-से कोमल सकरात्मक तंतु..और उसपर छिड़कते जाते थे--जीवन से लबालब संगीतबद्ध शब्द-माल..!!!
इस सहृदयता को संजो दराज़ की 'राग दरबारी' में टांग दिया है..!!"
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---कुछ स्मृतियाँ धारा, राह, लक्ष्य सब बदल जाती हैं..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी पोस्ट की चर्चा 17- 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें ।
धन्यवाद अरुण शर्मा जी..!! आभारी हूँ..
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