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"न जाने खुद की कितनी परतें उसके नाम लिखीं.. कितने विश्वास से समर्पित किया स्वयं को..!!
उसके फ़क़त..हर मोड़ मुझे छलनी किया..उकेड़ा मेरे लहू का क़तरा-क़तरा सरे-राह.. नीलाम किया वज़ूद मेरा..मज़ाक बनाया हर मजलिस..!!
मोहब्बत के रंग थे..या..प्यार का साज़..?? बे-रंग..बे-ताल..बे-बस.. नियति है मेरी..!!"
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--सफ़र लम्बा हो तो क्या..दर्द भी गहरे हो सकते हैं न..हर उस पल के..