
...
"हारने की आदत पुरानी है..
अपनी इतनी ही कहानी है..
कौन समझेगा फ़लसफ़ा..छाई..
दुनियादारी वाली रवानी है..
क़त्ल..वस्ल..उल्फ़त..ज़ख्म..
बीत गयी इनमें ही जवानी है..
रक़ीब ग़मज़दा इन दिनों..
हबीब ने आज बंदूक तानी है..
बहर से बाहर बह रहा..वाईज़..
मेरी हक़ीक़त किसने जानी है..
हँस लो..मार ठहाके ज़रा..तुम..
न आनी..फ़िर रात सुहानी है..!!"
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--ज़ख्म कैसे-कैसे..