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"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..
आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"
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Sunday, May 21, 2017
'सिलवट के घेरे..'
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
5/21/2017 08:34:00 AM
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...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
