Tuesday, November 26, 2024

'बिन उम्मीद का अतुल्य बंध'


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"प्यारे साहेब,

आज अरसे बाद कॉफ़ी का पहला सिप लेते ही कुछ पुराना ज़ेहन में उभर आया.. कुछ 'ख़ास' था या उसे इस उपमा से हमने संवारा.. जो था, लबालब था.. मुझसे और मेरी वफ़ाओं से..

सोचता है 'दिल' कभी-कभी के गर ना लिखता 'हाले-दिल', कैसे आपके 'दिल तक' पहुँचता मेरे होने का सबब..

इस गुलाबी नगरी की नरम गुलाबी सर्दियां.. कुछ ख़ुमारी मौसम में, कुछ लफ्ज़ों की वादियों में.. उस अल्हड़ भागते मन का क्या करें, जो निकलता ख़ुद से मिलने और रुकता उसके ख़्याल पर..

आप जानते हैं ना, साहेब, इन दिनों 'वेग' के अपने पर्सनल पसंदीदा 'वेग' हैं.. जो सिर्फ अपने 'वेग' में बहते हैं.. सुकूँ है कि आप सुनते हैं इत्मीनान से.. ❣️

शुक्रिया यूँ होने का, प्यारे साहेब..♥️

विरक्ति का स्थान अब 'विस्मयकारी' है… क्योंकि अब मैं 'विशेष समय, ऊर्जा, संसाधन' स्वयं पर केंद्रित कर रही.. अंतस तक महक रहा यह अद्भुत उपहार.. 

अब तक का सबसे खूबसूरत वक़्त..एहसास..🔥

साहेब, आपके समीप होने से बहुत कुछ स्वतः ही सुलझ जाता है.. जैसे 'राह' अपनी 'तासीर' जानती है.. 'शाम' अपनी 'तस्वीर'.. 'बही-खाते' अपनी 'पाती'.. 'चाशनी' अपना 'तार'.. 'आप' हैं तो सब 'आसां' हैं, प्यारे साहेब.. 🩷

आपका होना 'नेमत'..🪷

यूँ प्रगाढ़ होता रहे यह 'बिन उम्मीद का अतुल्य बंध'..

स्नेह बरसता रहे, सदैव और हमेशा..❣️!!"

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--#प्रियंकाभिलाषी

Monday, January 1, 2024

खत और आप..


Words Credit : प्यारे दोस्त को..
Photo Credit : अपना दूरभाष यंत्र..

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"प्यारे साहेब,

इन दिनों आपको पत्र लिखने का संयोग संभव न हो सका, मन ही दृढ़ नहीं होगा अन्यथा राही को डगर ज्ञात न हो, ऐसा होता है क्या?

आपका 'होना' जैसे प्रेरणा-पुंज, जब चाहें खोज लें परिस्थिति अनुसार 'पथ और पाठ'...

आपका 'अनुभव' जैसे मेरे लिए उपहार, जब चाहें मिलते 'उदाहरण हज़ार'..

आपका 'अपनत्व' जैसे प्रवाह, जब चाहें बहने दें भीतर के प्रमाद..

आपका 'स्नेह' जैसे मोतियों का हार, जब चाहें पहन सहेजें संबंध प्रगाढ़..

आपका 'उत्तर' जैसे नदी की धार, जब चाहें टटोलें स्वयं की झंकार..

आपकी 'सलाह' जैसे पुष्प हरसिंगार, जब चाहें मन सुवासित अपार.. 

शुक्रिया यूँ होने का!😍"

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--#खत 2024 का.. पहला-पहला.. ☺️