Friday, January 29, 2016

'टुकड़े नींद के..'





...

"वक़्त संभाले मुझे..
निभाए रवायतें..
खंगालती रही..
बेहिसाब-से हिसाब..

टूट जायें..
रूह के सारे ख्व़ाब..
टुकड़े नींद के..
जिस्म चीरते रतजगे..
औ' लफ़्ज़ों की गाँठ..

कीमत कौन जाने..
आवारा साँसों की..
दर्ज़ हर दरख्त पे..
गुनाह-ए-हसरत..

मैं बिकता..
अंजुमन-अंजुमन..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

ख्वाबों की बेहतरीन उडान से सजी बढिया नज्म...

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!