Saturday, January 30, 2016
'वक़्त की खरोंचे..'
...
"वक़्त की खरोंचे..
बेरहम मरहम..
काश सहेज सकता..
ये दमख़म..
दोस्ती वाली बातें सारी..
याद रहेंगी उम्र सारी..
दूरियां दरमियां..
रखेंगी आँखें तारी..
फ़ैसला पाबंद..
गर उसका..तो क्या..
दिल में सजेगी..
इक तेरी क्यारी..!"
...
Labels:
स्मृति..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2016) को "माँ का हृदय उदार" (चर्चा अंक-2238) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद..मयंक साब..!!
Post a Comment