Friday, April 30, 2010
' ए-महबूब..'
...
"मौसम बचपन-सा खुशनुमा है आज..
हँस के आँखों से बहे हैं आँसू आज..
ना जाना ए-महबूब..इक पल को भी दूर..
हो जाऊँगा..तेरी चाहत में मशहूर..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/30/2010 07:29:00 AM
5
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
'मैहर-ए-खुदा..'
...
"करके लौटे हैं..
इक सफ़र..
पा सका ना..
वो नज़र..
कब होंगी पूरी..
तलाश मेरी..
कब होंगी दूर..
तन्हाई मेरी..
मशाल सबब..
ईमां हौसला..
सांच दमखम..
मैहर-ए-खुदा..
कर लूँगा..
हासिल हर कूचा..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/30/2010 05:08:00 AM
6
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Monday, April 26, 2010
' दरिया..'
...
"बेवज़ह..
चाहत के निशाँ उधेड़तें रहे..
रूह को हर नफ्ज़..
खंज़र भी हैरान हैं..
अश्कों का दरिया देख..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/26/2010 04:00:00 AM
7
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'आँसू..'
...
"सपना संजो रखा है..
फ़क़त..कैसे तोड़ें..
पाया है तुम्हें..
अब..कैसे छोड़ें..
हाल-ए-दिल ब्याँ..
कैसे धडकनें मोड़ें..
मेरी मय्यत पर..
खैर..
आँसू पुराने..
कोई कैसे जोड़ें..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/26/2010 01:40:00 AM
7
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Sunday, April 25, 2010
'कश्ती..'
...
"खंज़र घोंप दो..
सीने में आज..
जलता हूँ..
ऐसे भी..
यादों के समंदर..
जज़्बातों की कश्ती में..
मेरे महबूब..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/25/2010 08:57:00 AM
4
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Saturday, April 24, 2010
'नाम..'
...
"अजनबी मिले बेशुमार..
सफ़र-ए-दरिया-ए-ज़िन्दगानी..
चिरांगा हुए..
रूह से रूबरू..
बिखरी झोली में
मसर्रत-ए-'प्रियंकाभिलाषी'..
नज़राना-ए-अक़ीदत..
सज़ा रखा है..
आईने में..
ए-हम-ज़लीस..
देहलीज़-ए-कूचा..
कसौटी-ए-शाम..
नाक्शीन होगा..
फ़क़त मेरा नाम..!"
...
*मसर्रत = Happiness..
अकीदत = Affection..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/24/2010 03:46:00 AM
3
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'दुआ..'
...
"महबूब की बाहें..
वो नशीली निगाहें..
मीलों आकाश..
मुस्कुराता पलाश..
वादियों का साज़..
पक्षियों की आवाज़..
ए खुदा..
मेरी दुआ..
मुकम्मल कर दे..!!
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/24/2010 03:07:00 AM
3
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Wednesday, April 21, 2010
'कहानी जीवन की..'
An expression of thought from the perspective of today's Indian Youth..who is hopeful of the growth..believes strongly in the immense capabilities, opportunities, skills and resources of the nation..!!
...
"कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
राह शान्ति की सीखने लगा हूँ..
पंख बहार के उड़ने लगा हूँ..
फसल खुशाली की बोने लगा हूँ..
पानी तृप्ति का देने लगा हूँ..
खाद आत्मीयता की पोने लगा हूँ..१
कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
फूलों की क्यारी सजाने लगा हूँ..
शिक्षा की रौशनी फैलाने लगा हूँ..
कुम्हार की मिट्टी पाटने लगा हूँ..
बचपन की पौध रमाने लगा हूँ..२
कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
पक्षियों का आँचल खिलखिलाने लगा हूँ..
नदियों का आँगन झिलमिलाने लगा हूँ..
पर्वतों का साम्राज्य टिमटिमाने लगा हूँ..
रज़ की खुशबू रिमझिमाने लगा हूँ..३
कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
तस्वीर यौवन की तराशने लगा हूँ..
चितवन अधेड़ावस्था का संभालने लगा हूँ..
मोती सागर से तलाशने लगा हूँ..
नीलगगन बजुर्गों का संवारने लगा हूँ..४..
कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
राह समृद्धि की जीने लगा हूँ..
भारत 'माँ' का यथार्थ सीने लगा हूँ..
हाँ..
कहानी जीवन की लिखने लगा हूँ..
राह शान्ति की सीखने लगा हूँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/21/2010 07:52:00 AM
9
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Tuesday, April 20, 2010
'बरक़त-ए-दियार..'
...
"तहज़ीब-ए-दस्तूर..
दहली है..
सियासत के..
तूफानी दलदल में..
आज फिर..
भारी है..
तासीर-ए-हवस-ए-इंसान..
बरक़त-ए-दियार..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/20/2010 05:43:00 AM
6
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'लकीरें..'
...
"रश्क-ए-तन्हाई..
तंग है..
अरमानों से हुई..
जंग है..
शिकवा-ए-सुकून..
दंग है..
मंज़र-ए-जिंदगी..
रंग है..
फासिलों..
अब तो यकीं मानो..
लकीरों में..
बस..खुदा जानो..!"
...
*लकीरों = हाथों की लकीरें..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/20/2010 05:19:00 AM
1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Monday, April 19, 2010
'फरेबी मयखाने ..'
...
"जला दो..
सपने सारे..
ना कोई..
निशां रहे..
तड़पा दो..
अपने सारे..
ना कोई..
बेज़ार रहे..
फरेबी हुए..
मयखाने भी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/19/2010 01:42:00 AM
10
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'सल्तनत-ए-फिरदौस..'
...
"गेसुओं में उलझी..
इक हंसी प्यारी..
बरकत से महके..
झोली तुम्हारी..
हर मोड़े मिले..
रिश्तों की क्यारी..
सल्तनत-ए-फिरदौस..
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/19/2010 01:03:00 AM
1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Sunday, April 18, 2010
'रंगत..'
...
"तरसा हूँ..
ता-उम्र..
इक चाहत के लिए..
बरसा हूँ..
ता-उम्र..
इक आहट के लिए..
समेट लम्हे..
काज़ल से..
रंगत उधार लाया हूँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/18/2010 10:15:00 AM
6
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Saturday, April 17, 2010
'खुशबू..'
...
"गहराता रहा समंदर..
शब भर..
तड़पता रहा साहिल..
शब भर..
टूटा था..
फलक से..
दरिया-ए-अब्र कोई..
खुशबू रूह से..
टकराती है..
अब तलक..
जिसकी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/17/2010 11:13:00 AM
11
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Friday, April 16, 2010
'रंजिश..'
...
"समेट ना सका..साया कभी..
रंजिश निभाओ तो ऐसे..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/16/2010 08:01:00 AM
10
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Tuesday, April 13, 2010
Wrote on the request of a Net friend, Shri Omendra Jee..!!!
...
"हंसता मुस्कुराता..
ऋतू गुनगुनाता..
नदिया डुगडुगाता..
बादल रुनझुनाता..
तारे खनखनाता..
बारिश झनझनाता..
उपवन लहलहाता..
पक्षी सनसनाता..
खुशियाँ बिखेरता..
आँसू समेटता..
कदम उखेड़ता..
जोश उड़ेलता..
ऐसा ही है..
इक प्यारा-सा..
दोस्त हमारा..
नाम है जिनका..
ओमी दादा..!"
...
*Need ur comment, Omendra Sir..how well it matches ur personality..(Have known him through exchange of ideologies, thoughts over a wide range of topicz..Courtesy--GTalk Chat..)
...
"हंसता मुस्कुराता..
ऋतू गुनगुनाता..
नदिया डुगडुगाता..
बादल रुनझुनाता..
तारे खनखनाता..
बारिश झनझनाता..
उपवन लहलहाता..
पक्षी सनसनाता..
खुशियाँ बिखेरता..
आँसू समेटता..
कदम उखेड़ता..
जोश उड़ेलता..
ऐसा ही है..
इक प्यारा-सा..
दोस्त हमारा..
नाम है जिनका..
ओमी दादा..!"
...
*Need ur comment, Omendra Sir..how well it matches ur personality..(Have known him through exchange of ideologies, thoughts over a wide range of topicz..Courtesy--GTalk Chat..)
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/13/2010 08:50:00 AM
11
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
'रिवायत..'
...
"दम भरा करते थे..
साहिल पर सौदागर..
उकड़ गए हैं..
रूह से नौशादर..
अजीब रिवायत है..
शिकार खुद शिकार..
हुए इस बारिश..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/13/2010 08:14:00 AM
11
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Saturday, April 10, 2010
'बे-कास इंतज़ार..'
...
"निकल कूचे से..
माज़ी की राहें..
बिखरीं हैं शामें..
थोड़ी हरारत..
सुलगता अब्र..
इक सफ़र..
नासूर फिज़ा..
बे-कास इंतज़ार..!"
...
*बे-कास = अंतहीन..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/10/2010 08:19:00 AM
3
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
'बदमस्त खानः बदोश..'
...
"निभा सको गर वादा..इक चाहत हूँ मैं..
समेट सको गर आँसू..इक काज़ल हूँ मैं..
मिटा सको गर हसरत..इक आहट हूँ मैं..
अपना सको गर अक्स..इक आँचल हूँ मैं..
हर मोड़ बिका..साहिलों का सौदागर हूँ मैं..
मुद्दत से..
साँसों के शोर का चीरता..
बदमस्त खानः बदोश हूँ मैं..!"
...
*बदमस्त = Intoxicated
खानः बदोश = Traveller..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/10/2010 01:02:00 AM
10
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Thursday, April 8, 2010
'कफ़न..'
...
"तूफां मंज़िल हुए जाते हैं..
साहिल तन्हा हुए जाते हैं..
चलते हैं..कफ़न बाँध कर जब..
राहों में..फ़लक सिमट जाते हैं..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/08/2010 01:27:00 AM
5
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Wednesday, April 7, 2010
'सुकून-ए-काज़ल..'
...
"रुस्वाइयां तैरती थीं..
साँसों से टकराती थीं..
राहें उलझतीं थीं..
निगाहों से शर्मातीं थीं..
खामोश है..
मंज़र सारा..
मुद्दत हुई..
आईना नहीं देखा..
सच है..
सुकून-ए-काज़ल..
नहीं देखा..!"
...
"रुस्वाइयां तैरती थीं..
साँसों से टकराती थीं..
राहें उलझतीं थीं..
निगाहों से शर्मातीं थीं..
खामोश है..
मंज़र सारा..
मुद्दत हुई..
आईना नहीं देखा..
सच है..
सुकून-ए-काज़ल..
नहीं देखा..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/07/2010 08:05:00 AM
3
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Sunday, April 4, 2010
'खामाखां..'
...
"भिगो गयी..
रुसवाई की आँधी..
साँसें उलझी हैं..
रूह से..
खामाखां..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/04/2010 09:47:00 AM
14
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Saturday, April 3, 2010
'बेटू..'
This is written xclusively for my 'betu'..whozz an integral part of my life and my soul..!!
...
"तराशा है..
जब-जब खुद को..
पाया है..
अपना 'बेटू'..
तपाया है..
जब-जब खुद को..
निखारा है..
अपना 'बेटू'..
रवानगी-ए-जिंदगानी..
खो कर..
हँसाया है..
अपना 'बेटू'..
शफ़क़त लपेट..
सजाया है सेज..
रूह से..
महकाया है..
अपना 'बेटू'..!"
...
* शफ़क़त = वात्सालय..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/03/2010 06:22:00 AM
8
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Thursday, April 1, 2010
'दरिया-ए-जद्दोजेहद..'
...
"सुकूं मिलता जो..
कूचे पे..
ए-सनम..
ना रुख होता..
दरिया-ए-जद्दोजेहद..
महफ़िल-ए-आफ़ताब..
सजती गुलों से..
बेज़ार हुआ..
जो अब..
आलम..
बिखर जाऊँगा..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
4/01/2010 04:07:00 AM
4
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..