Sunday, April 18, 2010

'रंगत..'


...

"तरसा हूँ..
ता-उम्र..
इक चाहत के लिए..

बरसा हूँ..
ता-उम्र..
इक आहट के लिए..

समेट लम्हे..
काज़ल से..
रंगत उधार लाया हूँ..!"

...

6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

दिलीप said...

waah bahut achche...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

M VERMA said...

अच्छा है --- सुन्दर

संजय भास्‍कर said...

बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!