Tuesday, December 21, 2010

'मौसम-ए-मोहब्बत..'



...


"कहते हैं..
फ़ासिल..
मौसम-ए-मोहब्बत होता है..

वो क्या जानें..
रूह के दरीचे का..
कभी रंग होता है..

भीगतीं हैं..
आरज़ू की कश्तियाँ..
क्या साहिल का..
कोई *मुहाफ़िज़ होता है..

जज़्बातों को लुटाना..
बाज़ी नहीं तमाशाबीनों की..
हौसला **रानाई-ए-ख्याल में होता है..!!"

...

#मुहाफ़िज़ = Guard/Guardian..
*रानाई-ए-ख्याल = Tender Thoughts..

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Amit Chandra said...

बेहद खुबसुरत अहसास। दिल को छूती है। कभी हमारे ब्लाग पर भी पधारे। धन्यवाद।

संजय भास्‍कर said...

सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

संजय भास्‍कर said...

दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

निर्मला कपिला said...

भागती हैं आरजू की कश्तियाँ----- वाह बहुत सुन्दर संवेदनाओं का शब्द शिल्प। बधाई।

DR. ANWER JAMAL said...

nice post.
धर्म और अध्यात्म
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' दो शब्दों से मिलकर बना है । अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है ख़ुद । इस प्रकार अध्यात्म का अर्थ है ख़ुद को ऊपर उठाना । ख़ुद को ऊपर उठाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ गुण धारण करना अनिवार्य है जैसे कि सत्य, विद्या, अक्रोध, धैर्य, क्षमा और इंद्रिय निग्रह आदि । जो धारणीय है वही धर्म है । कर्तव्य को भी धर्म कहा जाता है। जब कोई राजा शुभ गुणों से युक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करता तभी वह ऊपर उठ पाता है । इसे राजधर्म कह दिया जाता है । पिता के कर्तव्य पालन को पितृधर्म की संज्ञा दे दी जाती है और पुत्र द्वारा कर्तव्य पालन को पुत्रधर्म कहा जाता है। पत्नी का धर्म, पति का धर्म, भाई का धर्म, बहिन का धर्म, चिकित्सक का धर्म आदि सैकड़ों नाम बन जाते हैं । ये सभी नाम नर नारियों की स्थिति और ज़िम्मेदारियों को विस्तार से व्यक्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। सैकड़ों नामों का मतलब यह नहीं है कि धर्म भी सैकड़ों हैं । सबका धर्म एक ही है 'शुभ गुणों से युक्त होकर अपने स्वाभाविक कर्तव्य का पालन करना ।'