...
"अजीब प्रश्न किया उन्होंने..
पूछा..
'क्या तुम हँसती हो..?'
कौन समझाए भला..
ऐसी बातों पर अवश्य ही..
मांसपेशियों को आराम नहीं देते..
दबदबाती..शर्माती आँखों से कहा..
'जी..'
'सुनिए..क्या आप शर्माती हैं..?'
यूँ दौड़ता हुआ इक विचार आया..
'क्या यह महानुभाव विवाह करेंगे..
या जीवन-भर व्यंग से निर्वाह करेंगे..?
हाथी के दाँत..खाने के और..दिखाने के और..
सामाजिक परिवेश भी क्या-क्या रंग दिखलाते हैं..
जीवन के महतवपूर्ण प्रसंग में चले आते हैं..
कितने अजीब यह दिल के बहुरूपी नाते हैं..'..!!"
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4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
पंक्तियाँ स्पंदनशील हैं ।
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
धन्यवाद अरुणेश मिश्र जी..!!
धन्यवाद संजय भास्कार जी..!!
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