
...
"बुनता हूँ..
आशियाना-ए-ख्वाब..
गेसुओं से झाँकतीं..
सुर्ख निगाहें..
करती हैं..
बरबस सवाल..
थाम लेते गर..
मुसलाधार बारिश..
कंपकंपाती रात..
लबरेज़ अरमान..
कहते अपनी जुबां..
तन्हा हूँ..
महफ़िल है बेज़ार..
समा जाओ..
चिराग-सा रोशन..
मेरे गुल-ए-गुलज़ार..!!"
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