Saturday, February 5, 2011

''पाषाण-ह्रदय..'


...


"दूर हवा के झोंके से..
मचल जाता हूँ..
जीवन के हलके स्पर्श से..
संभल जाता हूँ..
जल की निर्मल बूँद से..
निखर जाता हूँ..
दिनकर की पहली किरण से..
चहक जाता हूँ..
चन्द्रमा की शीतल चाँदनी से..
महक जाता हूँ..

गहराई से गहरी है..
कुदरत की जादुई छड़ी..
'पाषाण-ह्रदय' सींच..
बनाया करुणा की लड़ी..!!"

...

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Anonymous said...

जादुई छड़ी और करुणा की लड़ी का जवाब नही है!
बहुत सुन्दर रचना है!

संजय भास्‍कर said...

.बहुत खूबसूरत अहसास है.

निर्मला कपिला said...

सच मे उस प्रभु की मया भी अद्भुत है। एक तिनके का भी सृजन कैसे करता है। सुन्दर एहसास । बधाई।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!