Tuesday, March 22, 2011
'नासूर बहुत..'
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"जलने जीने के बहाने बहुत..
अफ़साने मरने मिटने के बहुत..
इश्क-ए-नगमा जज़्बे बहुत..
रौशनी गम की चादर बहुत..
राग पुराना..नमक के डले बहुत..
समझाने समझने तस्सवुर बहुत..
दीवानगी तिश्नगी अदाएं बहुत..
अश्क़ वफ़ा का खामियाज़ा बहुत..
खबर क़यामत मासूमियत बहुत..
नज़रों का मिलना बिछड़ना बहुत..
ख्व़ाब धड़कन हकीक़त बहुत..
फ़साने सफ़र मोहब्बत बहुत..
नाज़ुक मंज़िल ठोकर बहुत..
आहिस्ता-आहिस्ता इंतज़ार बहुत..
ऐतबार इनायत जी-हुजूरी बहुत..
साहिल खंज़र नासूर बहुत..!!!"
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Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
"खबर........मोहब्बत बहुत"
बहुत अच्छा लिखा है आपने!
धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!
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