Thursday, August 11, 2011
'बारिश के माणिक..'
...
"भेजे हैं कुछ..
बारिश के माणिक..
जज़्बातों को लपेट..
अरमानों को सहेज..
यादों की निबोरी..
मासूमियत की लोरी..
मिलते ही डाक..
पत्र लौटाना..
और..
हाँ..
ना करना नुमाइश..
कि हँसे ज़माना..!!"
...
Labels:
रूमानियत..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
कमाल का लेखन है। बहुत ही अच्छी कविता।
हर एक शब्द हर पंक्तियाँ लाजवाब है! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
अच्छा लिखा है ...नुमाइश करनी भी नहीं चाहिए ...गलत है,ज़माने के आगे बेपर्दगी ....नितांत अपने पलों,यादों भावनाओं की...कभी भी नहीं .....और प्यार में तो ...बिलकुल भी नहीं .
प्रियंका ....अरमानों के सहेज की जगह अरमानों को सहेज होगा...टाइपिंग की गलती हो गयी है
शुक्रिया दी..!!!
धन्यवाद दी..त्रुटी सुधार कर लिया है..!!
शानदार पंक्तिया....
Post a Comment