आपके लिये दी..
...
"संघर्ष के काल में..
अपनत्व के अकाल में..
तुम ही थे..
हर क्षण..
बाँधते..
तराशते..
सँभालते..
कैसा बंधन है..
निस्वार्थ पवित्र सुंदर..
बिन स्पर्श पाती हूँ..
तुम्हें समीप..
ऐसा माधुर्य..
ऐसा स्नेह..
अमूल्य अद्भुत..
अभिभूत हूँ..
जीवन की इस कठिनतम बेला पर..
करती ह्रदय से प्रकट आभार हूँ..!!"
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