Friday, February 22, 2013
'प्यार-प्यार..'
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"तुम्हारी हर धड़कन क्यूँ लेती है मेरा नाम..?? फिर तुम मुझे जानते ही कितना हो..कोई १५ दिन पुरानी ही होगी ना हमारी मुलाकात.. क्यूँ इतनी गहरी उतर गयी है मेरी खुशबू तुम्हारे ज़ेहन में कि अब उसके बिना तुम मचल जाते हो..?? तुम्हारी हर कोशिका क्यूँ मुझे महसूस करना चाहती है..??
क्यूँ पिघल गयी तुम्हारी बेबाकी..?? क्यूँ खिल गया आँखों का सितारा मेरी आवाज़ सुन..?? क्यूँ मेरे इस बुखार से तुम्हारा मन भी तप-सा गया था..?? क्यूँ मुझसे बात करने के ख़ातिर ताक पर रख देते हो अपने ख़ूनी-रिश्ते..?? क्यूँ बदल दिया अपना समय इस अंतरजाल पर आने का..???
तुम प्यार-प्यार का दावा करते रहते थे..अब कहो...प्यार वो था जो अब तक तुमने जाना था....या फिर ये सब है..??"
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---अनकहे लफ्ज़..गैर-सा इंतज़ार..
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कहानी..
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जीवन जीने और प्यार के अनुमान हमारे अपने बचकाने या अनुबंधित भी होते हैं … ज्ञात से ...पर यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं के जो असल में प्यार है और जो जीवन है वह वैसा ही हो जैसा कि हमारी सोच, हमारी चाह होती है...क्या हम सच्चे प्यार और ज़िंदगी के पैरोकार हैं या आभासी देखादेखी वाली ज़िंदगी या प्यार के ...
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श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
धन्यवाद मयंक साब..
आभारी हूँ..
धन्यवाद GGShaikh जी..!!
प्यार तो शायद दोनों ही हों ... समय के बदलाव ने असर कर दिया हो ..
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