Friday, April 19, 2013

'वज़ूद की ख़ाल..'






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"वज़ूद की ख़ाल अब पुरानी हो चली है..लौटाना चाहता हूँ वो सारे पल..वो सुन्दर मोतियों-सी लिखावट..जिससे मेरे नाम के अक्स बिछते थे सूत की चादर पर हर शब दरिया किनारे..!!!"

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