Monday, April 28, 2014
'श्वेत पुष्प..'
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'कितना श्वेत है तुम्हारा श्वेत पुष्प..अपनी पीताम्बरी को स्नेह से जोड़ता होगा यूँ ही..!!"
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--प्रगाढ़ गठजोड़ इसे ही कहते है न..प्रिये.. <3
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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4/28/2014 03:34:00 AM
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रूमानियत..
Sunday, April 27, 2014
'मीत मेरे..'
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"इक मेरे मन का राग.. इक तेरे मन का साज़..
मधुर संगीत के लिए आवश्यक है, प्रिये..!!"
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--मीत मेरे.. रीत हो तुम.. <3
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priyankaabhilaashi
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4/27/2014 10:26:00 AM
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रूमानियत..
'तंज़ दीवार..'
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"जो चाहें जीवन में कब मिलता है..
हर ख्व़ाब तंज़ दीवारों में सिलता है..!!"
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--हकीक़त-ए-ज़िन्दगी..
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priyankaabhilaashi
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4/27/2014 08:18:00 AM
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ज़मीनी हकीक़त..
Saturday, April 26, 2014
'विसर्गः कर दो..'
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"मेरे विस्तार को अनंत कर दो.. मुझे विराट से तुम्हारे नाम का विसर्गः कर दो..!!"
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--वैकल्पिक विचार..
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priyankaabhilaashi
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4/26/2014 09:52:00 AM
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रूमानियत..
Wednesday, April 23, 2014
'विश्व पुस्तक दिवस..'
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"आज विश्व पुस्तक दिवस है..
मेरी पुस्तक के पहले पन्ने से आखिरी तक..तुम ही मेरा विश्व हो..मेरे प्रत्येक दिवस की पुस्तक..मेरी रात्रि की स्याही हो..!!"
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--पुस्तक का मूल आधार तुम हो..प्रिये.. <3
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priyankaabhilaashi
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4/23/2014 10:27:00 AM
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रूमानियत..
Thursday, April 10, 2014
'चाँद..'
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"ए-दोस्त..
चाँद तुम्हें भी नज़र आता है न..
आज मैंने देखा..
तुमने देखा..
चाँद को तनहा-सा..
नहीं..नहीं..
तुमने तो उसे हँसते हुए देखा..
वो तो हार्टबीट माफ़िक..
बढ़ता-घटता है..
पर..
चाँद..चाँद तो तनहा ही होता है..
देखना तुम कभी..
मेरी नज़र से..
सोचना तुम कभी..
मेरे शज़र से..
पाओगे..
तन्हाई की चादर..
गीली साँसें..
और..
बेसबब उदासी..!!"
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priyankaabhilaashi
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4/10/2014 03:39:00 AM
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बेज़ुबां ज़ख्म..
Tuesday, April 8, 2014
'दुआओं का अंबार..'
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"पल वो सारे..
तैरते हैं प्यारे..
थपकी वो दुलारी..
तेरी अदा निराली..
नटखट बेटू मेरा..
लगा साँसों पे डेरा..
मस्ती भरपूर थी..
ज़िंदगी नूर थी..
तेरी ख़ामोशी सालती है..
सपना वापसी का पालती है..
क्यूँ गया वक़्त..फिर आता नहीं..
दामन-ए-उम्मीद जाता नहीं..
काश..
भर सकता तेरे लिए..
दुआओं का अंबार..
पर..
कुछ एहसासों को आराम नहीं मिलता..
सच है..
उन अपनों को..सबके आगे नाम नहीं मिलता..!!"
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priyankaabhilaashi
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4/08/2014 10:27:00 AM
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बेटू..
Sunday, April 6, 2014
'डिमांड..'
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"तुम्हें पा ज़िन्दगी से नाता तोड़ा था जब..
एहसां ज़िन्दगी पर..कर दिया था बस..
कहती थी तुमसे हाले-दिल सुबह-शाम..
इसीलिए सर झुका गया..फ़क़त आसमान..
मुझे मुझसे बेहतर तुमने था जाना..
बिखरा कैसे..आज ये आशियाना..
'कुछ भी' डिमांड करना आदत थी..
रूह के पोर-पोर को राहत थी..
जां..तुम बिन कटती नहीं रतियां..
आ जाओ..कि बनती नहीं बतियां..!!"
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--मिस यू..बैडली..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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4/06/2014 10:17:00 AM
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अंतर्मन की पुकार..
Friday, April 4, 2014
'इनायत का कलाम..'
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"जाने कब क्या समझ सकूँगी..
जो न समझी परतों की परत..
गम-ए-दरीचा कैसे समझ सकूँगी..
कहते वाईज़..इनायत तुमपे भी होगी..
जो न लिखा..वो कैसे समझ सकूँगी..
होने लगे फ़ीके..लफ्ज़ मेरे..इस कदर..
दर्द-ए-जानिब दर्द..अब कैसे समझ सकूँगी..
मिटा दो..नामों-निशां..रूह से अपनी..
पाठ-ए-मोहब्बत..कैसे समझ सकूँगी..
लिख रही हूँ..जाने क्या-क्या..सच है..
रदीफ़..मतला..बहर..कैसे समझ सकूँगी..!!"
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--आपकी इनायत का कलाम कलम हो गया..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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4/04/2014 03:00:00 AM
16
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रूमानियत..