Thursday, April 10, 2014
'चाँद..'
...
"ए-दोस्त..
चाँद तुम्हें भी नज़र आता है न..
आज मैंने देखा..
तुमने देखा..
चाँद को तनहा-सा..
नहीं..नहीं..
तुमने तो उसे हँसते हुए देखा..
वो तो हार्टबीट माफ़िक..
बढ़ता-घटता है..
पर..
चाँद..चाँद तो तनहा ही होता है..
देखना तुम कभी..
मेरी नज़र से..
सोचना तुम कभी..
मेरे शज़र से..
पाओगे..
तन्हाई की चादर..
गीली साँसें..
और..
बेसबब उदासी..!!"
...
Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
8 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 12/04/2014 को "जंगली धूप" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1580 पर.
वाह... उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@भूली हुई यादों
धन्यवाद राजीव कुमार झा जी..!!
धन्यवाद राजीव कुमार झा जी..
सादर आभार..!!
धन्यवाद तुषार राज रस्तोगी जी..!!
सादर आभार..!!
धन्यवाद प्रसन्ना बडन चतुर्वेदी जी..!!
सुंदर रचना.
धन्यवाद राकेश श्रीवास्तव जी..!!!
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