Wednesday, January 28, 2015
'बरफ़..'
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"सपनों का अपना रंग होता है.. तेज़ धूप और बारिश में बिखर जाते हैं..कोमल तंतु.. जाड़े में..हाँ..हाँ.. नर्म..मुलायम जाड़े में तो किनारे खिल उठते हैं..!! ऐन उसी वक़्त..दुनिया के थपेड़े खींच लेते हैं..तेरी-मेरी सूत की वो चादर..जिसके हर रेशे में क़ैद है..हमारी उल्फ़त का अलाव..!!!
ज़ार-ज़ार रोया बहुत..जाड़े की सबसे सर्द रात..और दूर वादियों में गिरी 8 इंच मोटी बरफ़..!!"
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--दर्द #3
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रूमानियत..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.01.2015) को ""कन्या भ्रूण हत्या" (चर्चा अंक-1873)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
बहुत खूब ...जाड़ों की सर्द रात कमाल कर रही है ...
धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी..
सादर आभार..!!
धन्यवाद दिगंबर नास्वा जी..!!!
बहुत सुन्दर ...
सादर आभार प्रतिभा वर्मा जी..!!
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