Friday, July 10, 2015
'मोतीचूर लड्डू..'
#जां
...
"बातों-बातों में हुआ ऐसा..
सब कुछ #जां का होता गया..
और..
मैं हारता गया..
हो उदास..पूछा जो उनसे..
'मेरा क्या..गर ये सब आपका है तो'..
ज़ालिम #जां का..
ज़वाब कुछ यूँ आया..
'मैं'..!!
होने लगे ऐसा जब..
समझना तब-तब..
साँसों से पक..
गिरफ़्त में ढक..
आँखों से चख़..
मोहब्बत की चाशनी..
और रसीली हो गयी है..!!"
...
--मोतीचूर लड्डू..चाशनी वाले..
Labels:
रूमानियत..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ११ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "पहला प्यार - ज़िन्दगी में कितना ख़ास" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
बहुत खूब ....
हार्दिक धन्यवाद तुषार रस्तोगी जी..!!
सादर आभार..देवेन्द्र पाण्डेय जी..!!
बढ़िया लिखा है आपने इस रचना को
हार्दिक धन्यवाद..संजय भास्कर जी..!!
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