Friday, July 31, 2015
'रुकसत की शहनाई..'
...
"कहाँ लिख पाता हूँ..
हाले-दिल अब..
गहराने लगे हो..
साँसों में जब..
ख़ास हो गए तुम..
दुनिया की तलब..
मैं कहाँ कह सकूँगा..
मोहब्बत के शफ़क़..
गिरफ़्त कस..रूह..
बंधे जाने..कब..
बोसे का जादू..
महके किस शब..
फ़साने दरमियान..
धड़कन-ए-दिल सबब..
हारा हर बाज़ी..
हसरतें गयीं दब..!!"
...
--ग़मे-जुदाई..रुकसत की शहनाई..फ़ुरक़त के शज़र..
Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
मन कि भावनाओं को सुन्दर शब्दों से सजाया है
सादर आभार..संजय भास्कर जी..!!
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