Thursday, September 3, 2015
'रात सुहानी है..'
...
"हारने की आदत पुरानी है..
अपनी इतनी ही कहानी है..
कौन समझेगा फ़लसफ़ा..छाई..
दुनियादारी वाली रवानी है..
क़त्ल..वस्ल..उल्फ़त..ज़ख्म..
बीत गयी इनमें ही जवानी है..
रक़ीब ग़मज़दा इन दिनों..
हबीब ने आज बंदूक तानी है..
बहर से बाहर बह रहा..वाईज़..
मेरी हक़ीक़त किसने जानी है..
हँस लो..मार ठहाके ज़रा..तुम..
न आनी..फ़िर रात सुहानी है..!!"
...
--ज़ख्म कैसे-कैसे..
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ग़ज़ल..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-09-2015) को "राधाकृष्णन-कृष्ण का, है अद्भुत संयोग" (चर्चा अंक-2089) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद..मयंक साब..:)
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