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"वक़्त की खरोंचे..
बेरहम मरहम..
काश सहेज सकता..
ये दमख़म..
दोस्ती वाली बातें सारी..
याद रहेंगी उम्र सारी..
दूरियां दरमियां..
रखेंगी आँखें तारी..
फ़ैसला पाबंद..
गर उसका..तो क्या..
दिल में सजेगी..
इक तेरी क्यारी..!"
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...
"वक़्त संभाले मुझे..
निभाए रवायतें..
खंगालती रही..
बेहिसाब-से हिसाब..
टूट जायें..
रूह के सारे ख्व़ाब..
टुकड़े नींद के..
जिस्म चीरते रतजगे..
औ' लफ़्ज़ों की गाँठ..
कीमत कौन जाने..
आवारा साँसों की..
दर्ज़ हर दरख्त पे..
गुनाह-ए-हसरत..
मैं बिकता..
अंजुमन-अंजुमन..!!"
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