Monday, September 26, 2016
'दहलीज़-ए-रूह..'
#जां
...
"आज दिल मचल गया..
कुछ ऐसे..
थाम लो..
अपने आँचल जैसे..
बंधा रहूँ..
वक़्त-बेवक़्त..
कलाई पे..
तेरी घड़ी जैसे..
लटकता रहूँ..
साँस-दर-साँस..
दहलीज़-ए-रूह..
तेरी चेन जैसे..
कस लो गिरफ़्त..
दम निकले..
रेज़ा-रेज़ा..
तेरी आह जैसे..!!"
...
--दिल धड़कने का सबब याद आया..
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बेबाक हरारत..
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