Sunday, June 4, 2017
'जाड़े की दस्तक..'
...
"जाड़े की दस्तक से ही आया था..
प्यार तुम्हारा..
इस बरस पूरे हो जाएँगे..
6 बसंत..6 ज्येष्ठ..6 सावन..और 6 कार्तिक..
हाँ, तब ही मिले थे तुम..
जुदाई-मिलन की कशिश से बंधे..
तुम-हम..
थिक्स-थिंस..से ग्रो होते..
हम-तुम..
रतजगे-अर्ली मोर्निंगज़..से रिफ्रेश होते..
तुम-हम..
ह्यूमिड दोपहर-मेस्मेराइज़िंग शाम..से फ्लोट होते..
हम-तुम..
औ..
इक शब..
तुम्हें लाइव देखना..जी भर..
दो मिनट की डैडलाइन का..
ग्यारह मिनट चौबीस सैकंड होना..
#जां..
आपका होना..
मेरा होना है..!!"
...
--#जां, मुबारक़..गिरफ़्त बाँहों-बोसों की..औ' तुम-हम..
Labels:
रूमानियत..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
मौसम की तरह हम-तुम बदलते रहते हैं
बहुत खूब
सादर धन्यवाद, महोदया..
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