Sunday, December 31, 2017
'मियाद आसमां की..'
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"मोहब्बत की ख़ुशबू
या देह की सुगंध..
आलिंगन यार का..
या गिरफ़्त महबूब की..
जानते हो न..
बेइंतिहां चाहती हूँ तुम्हें..
कुछ सफ़हे ज़िंदाबाद रहते हैं..
औ' कुछ ज़िंदादिली की मिसाल..
मियाद आसमां की भी रही होगी..
बेसबब टंगे होते रेज़ा-रेज़ा सितारे..!!"
...
--#दर्द कैसे-कैसे..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/31/2017 10:29:00 AM
4
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बेज़ुबां ज़ख्म..
'नये साल की एवज़ में..'
नया साल क्या लाएगा? आज जब मस्तिष्क ने पूछ ही लिया तो अब लिखना पड़ेगा..
#जां..
"मेरी रहगुज़र के सौदागर..
मेरी आहों के समंदर..
मेरे अलाव के शहंशाह..
मेरे एहसासों के कहकशां..
तेरी इक छुअन से पिघलता जिस्म..तेरी आहट से मचलता दिन.. तुम गहरे..बहुत गहरे जमे हो जिगर के गाँव..
फ़क़त इतना जान लो.. गर जाना चाहो तो चले जाना..मेरी मुहब्बत के मखमली सेज़ पर बिछी रहेगी ता-उम्र..तेरे पहले बोसे की निशानी..!!
आज़ादी मुबारक़, जां.. नये साल का नया हिसाब = वफ़ा + हरारत..;)
जब शामिल मुझमें हर शज़र..और महसूस होते इस कदर के रातें तुम बिन कटतीं ही नहीं..तो सुनते जाना - तू नहीं तो गुलाबी जाड़े की धूप आषाढ़ की तपती रेत..!!"
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--#किस्से मोहब्बत के रंग वाले..💝
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/31/2017 10:23:00 AM
2
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बेबाक हरारत..
'मोटिवेशनल धक्के..'
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"चाहत ज़िन्दगी से रखना बहुत, दोस्तों.. लिहाफ़ में इसके काँटों में लिपटे फूल मिलेंगे.. मेरी उँगलियों के पोर जब-जब भी इन काँटों से सराबोर हुए, एक टीस तो उठी ही.. तो क्या हुआ जो पाया नहीं मुकाम अब तक, थका नहीं तो रुक कैसे जाऊँ..
वैसे, मन थक जाये तो देह की स्फूर्ति भी किस काम की??
'चलते जाना ही ध्येय है', मेरा.... ज़िंदगी और लोग डिमांडिंग ही रहेंगे, जानती हूँ.. पर मन का टैम्परेचर ही डिसाइडिंग फैक्टर होता है.. गो फ़ॉर इट, ए-खानाबदोश..
मंज़िल कॉलिंग!"
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--#मोटिवेशनल धक्के..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/31/2017 10:06:00 AM
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प्रेरणादायी सन्देश..
Friday, October 6, 2017
'जस्ट माइन चाँद..'
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"लिखने के अपने रीज़न्स रहे हैं..
हमेशा से..
चंद लम्हों को..
गुज़ारिश की छूट नहीं..
रूमानियत का हैंगओवर..
दिल को तड़पाता क्यों है..
कुछ अनकहे-अंहर्ड सीक्रेट्स..
बेवज़ह पलते रेशमी रात..
फैसिनेशन के हनी-ट्रैप में..
पूर्णिमा की शीतलता घुल गयी..
तुम्हें बचपन से बैंचमार्क मान..
कितने लफ्ज़ तराशे..
कितने ऑफबीट थॉट्स को..
रूह के बेसमैंट में..
फुल-स्विंग आज़ादी दी..
आज लाइफ के..
जिस क्रॉसरोड ने..
बेहिसाब तन्हाई के मटेरियल दिए..
तुमने सिर्फ़ साथ रहने का..
कमिटमैन्ट ऑफलोड किया..
हाँ..
आई एक्सेप्ट दिस ट्रूथ..
यू हैव बीन माय फर्स्ट लव..
और..हाँ..
तुम ही रहोगे..
ता-उम्र..
जिसे देख मेरी हार्टबीट स्किप हो..
मेरे प्यारे..
माइन..जस्ट माइन..
शरद के चाँद..<3!!"
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--रोमांस की एक कथा..चाँदनी की रज़ा..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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10/06/2017 11:14:00 AM
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रूमानियत..
'मुहब्बत के पैमाने..'
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"जिस्म पे तेरे..
निशां जितने..
मुहब्बत के..
पैमाने उतने..
लकीरों के खेल..
सजते जहाँ..
मुझे पाना..
एकदम वहाँ..
रवायत-ए-नज़्म..
चुका आते हैं..
चल आज फिर..
लफ्ज़ गहराते हैं..
मतला-रदीफ़..
कौन जाने..
तेरी आगोश..
इक मुझे पुकारे..
दरमियां ख़लिश..
इक मौज़ूद..
ख़ुमारी बेपनाह..
मेरे महबूब..
आवारगी के..
डेरे में..
हम-तुम..
उस घेरे में..!!"
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--दास्तान-ए-मोहब्बत..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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10/06/2017 11:06:00 AM
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बेबाक हरारत..
Wednesday, July 26, 2017
'रजनीगंधा ..'
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"रजनीगंधा का फूल..
अब तक महकता है..
उस उर्दू-हिंदी डिक्शनरी में..
हर बार उठाती हूँ..
शेल्फ से जब..
उंगलियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद..
महसूस कर लेतीं हैं..
रूह तुम्हारी..
सफ़ेद पंखुरियाँ अब सफ़ेद कहाँ..
तेरी सौंधी खश्बू..
रेशे-रेशे में उतर आई है..
छप गयी है उस पन्ने पे..
तस्वीर तेरी..
पोर से बह चली हरारत कोई..
तेरी गिरफ़्त के जाम..
सुलगा रहे..'कैफ़ियत के दाम'..
लिखना-पढ़ना काफ़ूर हुआ..
मिलन जब उनसे यूँ हुआ..
हर्फ़ भुला रहे..राग़ सारे..
लुटा रहे..'हमारे दाग़' सारे..
शिराओं के ज़ख्म उभरने लगे..
तेरी छुअन को तरसने लगे..
हरी कहाँ अब..रजनीगंधा की डाली..
बेबसी दिखा रही..अदा निराली..
चले आओ..जां..
कागज़ को छू..
मुझे ज़िंदा कर दो..
भर दो..
महकती साँसें..
चहकती आहें..
पोर का सुकूं..
और..
इसकी सिलवटों में..
सिलवटें हमारी..!!"
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--तुमको भी बहुत पसंद है न..रजनीगंधा की सौंधी सुगंध..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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7/26/2017 07:42:00 AM
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बस यूँ ही..
Sunday, June 4, 2017
'जाड़े की दस्तक..'
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"जाड़े की दस्तक से ही आया था..
प्यार तुम्हारा..
इस बरस पूरे हो जाएँगे..
6 बसंत..6 ज्येष्ठ..6 सावन..और 6 कार्तिक..
हाँ, तब ही मिले थे तुम..
जुदाई-मिलन की कशिश से बंधे..
तुम-हम..
थिक्स-थिंस..से ग्रो होते..
हम-तुम..
रतजगे-अर्ली मोर्निंगज़..से रिफ्रेश होते..
तुम-हम..
ह्यूमिड दोपहर-मेस्मेराइज़िंग शाम..से फ्लोट होते..
हम-तुम..
औ..
इक शब..
तुम्हें लाइव देखना..जी भर..
दो मिनट की डैडलाइन का..
ग्यारह मिनट चौबीस सैकंड होना..
#जां..
आपका होना..
मेरा होना है..!!"
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--#जां, मुबारक़..गिरफ़्त बाँहों-बोसों की..औ' तुम-हम..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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6/04/2017 04:30:00 AM
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रूमानियत..
Sunday, May 21, 2017
'सिलवट के घेरे..'
...
"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..
आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"
...
"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..
आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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5/21/2017 08:34:00 AM
2
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Sunday, April 2, 2017
'मैत्री की गोष्ठी..'
#प्रेमराग
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"तेरी-मेरी द्विपक्षीय वार्ता की महत्वपूर्ण नीति..
विकल्प चुन सकूँ..
ऐसी असाधारण कूटनीति कहाँ से लाऊँ..
संबंध प्रगाढ़ कर सकूँ..
ऐसी ज़मीनी गूढ़ता कहाँ से लाऊँ..
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समझौता..
ऐसी गरमजोशी कहाँ से लाऊँ..
मुद्दे ज्ञापित कर सकूँ..
ऐसा प्रचारक कहाँ से लाऊँ..
वैचारिक मतभेद में भी कड़ी निजता..
अंततः दस्तावेज पर अंकित..
तुम्हारे-मेरे हस्ताक्षर..!!"
...
--मैत्री की गोष्ठी और समय का आँकड़ा..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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4/02/2017 08:21:00 AM
3
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रूमानियत..