Monday, January 22, 2018
'सिलवटें..'
...
"माँगा होता..
काश तुमने..
मोहब्बत का सफहा कोई..
भेज देता..
पोर का एहसास वहीं..
सिलवटें उलझतीं थीं..
छुअन को अपनी..
'जानां' जब आ गया..
जुबां पे तुम्हारे..
कहो..कैसे छोड़ दूँ..
ख़लिश सिरहाने..
वज़ूद चाहे 'नाम' अपना..
क्या इरादा इस 'शाम' सजना..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
1/22/2018 10:14:00 AM
6
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Labels:
बेबाक हरारत..